Monday 7 December 2015

भारत में घृणा की राजनीति

भारतीय इतिहास में Narendra Modi पहले नेता होंगे जिनका
विरोध करने के लिए नेता अभिनेता पत्रकार साहित्यकार
निजी स्वायत्त संस्थाये सभी के सभी उतर आये है... ये जितने
भी बुद्धिजीवी, साहित्यकार, लेखक, फिल्मवाले आज अपने
अवार्ड लौटा रहे हैं ये वास्तव में ये कान्ग्रेस के स्लीपर सेल हैं
जिनको पिछले कई वर्षों में शिक्षा, मिडिया से लेकर हर जगह
कान्ग्रेस ने फिट किया है,
क्योंकि कान्ग्रेस सत्ता में रहे या न रहे लेकिन उसके ये वामपंथी
मीडिया NGO रुपी स्लीपर सेल हमेशा बाहर से कान्ग्रेस की
लड़ाई लड़ते रहे हैं राष्ट्रवादी विचारधारा के खिलाफ...
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पत्रकारो एवम् न्यूज़ चैनलो के विरोध का स्तर और आलम ये है की
इन्हें देखने और पढ़ने के बाद ऐसा लगता है जैसे देश में गृहयुद्ध के
हालात हो.कानून व्यवस्था यूपी की खराब है लेकिन इन्हें
जवाब मोदी से चाहिए.सारी कमी सारी खराबी इन्हें मोदी
में ही नजर आती है...
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मजाल क्या जो कभी एक न्यूज़ एक लेख एक ब्लॉग लालू-नितीश
, मुलायम, मायावती , केजरीवाल , ममता के खिलाफ लिख
दिया हो सवाल ही नहीं पैदा होता आकाओ के खिलाफ
लिखने का हाथ ना कलम करवा देंगे इनके....
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वैसे भी मोदी सरकार के कढे रुख से भारत में जमे बैठे वामपंथी
गिरोह, बड़े बड़े विदेशी एनजीओ और मिशनरियो के साम्राज्य
के विस्तार पर संकट खड़ा हो गया है.....
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इसलिए कान्ग्रेस के ये स्लीपर सेल जिन्हे 2018 में सक्रिय होना
था, अब ये 2015 में ही सक्रिय हो रहे हैं....
आगे देखिएगा नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी समेत
कई बड़े अवार्ड धारी बाहर निकलेंगे जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
मोदी सरकार की छवि दागदार करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे..
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वास्तव मे ये महज़ अवार्ड वापसी कार्यक्रम नहीं है बल्कि देश में
अस्थिरता और विद्रोह पैदा करने का एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है...
आने वाले सालों में कैलाश सत्यार्थी के साथ आमिर खान,
रवीश कुमार समेत तमाम वामपंथी लोग अपनी सिविल
सोसायटी बनाकर समाज में बदलाव के नाम पर लोकपाल
आंदोलन की तरह एक गैर राजनीतिक मुहिम शुरू करेंगे, जिसका
मकसद सिस्टम में बदलाव के बहाने मोदी सरकार के खिलाफ
आक्रामक अभियान चलाना होगा......
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अभी सिर्फ इतना ही कह सकत हूँ... कि ये बहुत बड़ा गेम हैं
जिसके मोहरें सुनियोजित तरीके से अपने काम पर लग गए हैं,
इसलिए फिलहाल बस सचेत हो जाइए …
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और यह बुद्धिजीवी अपने AC रूम में बैठ कर प्राइम टाइम पे बहस
कराते है की बीफ पे पाबन्दी क्यों ? लेकिन बंगाल के दुर्गोत्सव
की पाबन्दी इनको नही दिखती ?

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