Sunday 29 November 2015

विकास के न ये पथ

कुछ दिनों पहले मेक इन इंडिया की पहली कड़ी के रूप में मध्यप्रदेश के भोपाल और बीना रेलवे स्टेशन के बीच पूर्ण तरीके से भारत में बनी ट्रैन चलाई गई। इस प्रयोग में 24 बोगी वाली ट्रैन 120 कि. मी./ घंटे की रफ़्तार से चलाई गई और प्रयोग अत्यंत सफल हुआ। शीघ्र ही भारतीय रेलवे हर रूट पर ऐसे रेलगाडियां चला सकता है। हर कोच में बायो टॉयलेट, साइड बर्थ में स्नैक्स टेबल, पाली विनोइल मटेरियल से बनी आगरहित सीटें होंगी। बीच की सीट (मिडिल बर्थ) में चढ़ने के लिए सीढ़ी (रेलिंग), साइड में सहारे के लिए सपोर्ट सिस्टम, कोच का फर्श कारपेट की तरह चमकता हुआ, हर सीट में पढ़ाई के लिए एलईडी लाइट, हर कम्पार्टमेंट में लैपटॉप और मोबाइल चार्ज करने की सुविधा, कोच में दोनों ओर अग्निशामक यन्त्र भी इस ट्रैन में होगा।

अपनी बोगी (कोच) में किसी भी प्रकार की गन्दगी होने पर अब आप विभाग को एसएमएस (SMS) करके सम्बंधित स्थान की सफाई करा सकते हैं। एसएमएस के लिए आपको Clean <PNR No.> लिखकर 58888 पर भेजना होगा अथवा इसके लिए बनाई गई वेबसाइट जाकर अपना PNR नंबर एवं मोबाइल नंबर देकर इस सुविधा का लाभ ले सकते हैं। यह जानकारी ट्रैन की हर बोगी में लगाईं जा चुकी है। रेलमंत्री सुरेश प्रभू एक बहुत ही दूरदर्शी और योग्य व्यक्ति हैं, देश के हर नागरिक को अच्छी रेल व्यवस्था देने का जिम्मा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने उन्हें सौंपा है और वे जी - जान से इसे पूर्ण करने में लगे हुए हैं। मुझे विश्वास है कि भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार देश के हर नागरिक तक वह रेल सुविधाएं पहुंचाने में सक्षम होगी जो कांग्रेस 60 सालों में नहीं कर सका।

A few days ago, Make in India saw its ideals take shape in the form of a train fully manufactured in India that ran from Madhya Pradesh's capital Bhopal to Bina railway station. This train has 24 bogeys and can run at the speed of 120 km/hr. The entire undertaking has been extremely successful. very soon, our railways will be in a position to start putting ingenuously made trains on the tracks of every route in the nation. Every such train's coaches will have bio toilets, side berths, snacks tables and seats wrought out of Polyvinyl. Middle berths will have railings to make it easier to climb, a support system will be present on the side, floors will made as good as carpeted floors while every seat will have LED lights for reading lights, every compartment will have laptop and mobile phone chargers and not to forget, fire extinguishing facilities in every coach.

In your bogey, you will also have the facility of messaging for a coach clean up via SMS. All you will have to do for this is text "Clean <PNR No.>" and send it to 58888, or alternatively you can give your mobile number and your PNR number on the website specially made for this purpose and avail the facility. This information is readily available in all compartments of the trains. Railways Minister Shri Suresh Prabhu has indeed proven himself to be a farsighted man, Every citizen in the nation will now be able to avail the conveniences the railways has to provide. This responsibility was given to Shri Suresh Prabhu by Prime Minister Shri Narendra Modi and he has really lived up to the task. I am very confident that the BJP led NDA will be able to give the citizens the kind of railways conveniences that the Congress hasn't been able to in over 60 years.

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Tuesday 24 November 2015

पढिये खबर।

BHU के भगवा करण की नई मिसाल, नेहरू को नहीं मानता चिंतक
बीएचयू पर पहले भी भगवाकरण के आरोप लगते रहे हैं, पर अबकी तो राजनीति विज्ञान विभाग ने सोची समझी रणनीति के तहत विवाद खड़ा करने की चाल चली है जानें क्या...
http://up.patrika.com/uttar-pradesh-news/bhu-present-new-instance-in-political-exhibition-2677.html

Tuesday 17 November 2015

हिन्दू जनमानस के प्रिय अशोक सिंघल जी को नमन

नब्बे के दशक में श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन जब अपने यौवन पर था, उन दिनों जिनकी सिंह गर्जना से रामभक्तों के हृदय हर्षित हो जाते थे, उन श्री अशोक सिंहल को संन्यासी भी कह सकते हैं और योद्धा भी; पर वे जीवन भर स्वयं को संघ का एक समर्पित प्रचारक ही मानते रहे।

अशोक जी का जन्म आश्विन कृष्ण पंचमी (27 सितम्बर, 1926) को उ.प्र. के आगरा नगर में हुआ था। उनके पिता श्री महावीर सिंहल शासकीय सेवा में उच्च पद पर थे। घर के धार्मिक वातावरण के कारण उनके मन में बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया। उनके घर संन्यासी तथा धार्मिक विद्वान आते रहते थे। कक्षा नौ में उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती की जीवनी पढ़ी। उससे भारत के हर क्षेत्र में सन्तों की समृद्ध परम्परा एवं आध्यात्मिक शक्ति से उनका परिचय हुआ।

1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया। उन्होंने अशोक जी की माता जी को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनायी। इससे माता जी ने अशोक जी को शाखा जाने की अनुमति दे दी।
1947 में देश विभाजन के समय कांग्रेसी नेता सत्ता प्राप्ति की खुशी मना रहे थे; पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा ? अशोक जी भी उन देशभक्त युवकों में थे। अतः उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य हेतु समर्पित करने का निश्चय कर लिया। बचपन से ही अशोक जी की रुचि शास्त्रीय गायन में रही है। संघ के अनेक गीतों की लय उन्होंने ही बनायी है।
1948 में संघ पर प्रतिबन्ध लगा, तो अशोक जी सत्याग्रह कर जेल गये। वहाँ से आकर उन्होंने बी.ई. अंतिम वर्ष की परीक्षा दी और प्रचारक बन गये। अशोक जी की सरसंघचालक श्री गुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही। प्रचारक जीवन में लम्बे समय तक वे कानपुर रहे। यहाँ उनका सम्पर्क श्री रामचन्द्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ। वेदों के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था। अशोक जी अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टतः स्वीकार करते हैं।
1975 से 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबन्ध रहा। इस दौरान अशोक जी इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे। आपातकाल के बाद वे दिल्ली के प्रान्त प्रचारक बनाये गये। 1981 में डा. कर्णसिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ; पर उसके पीछे शक्ति अशोक जी और संघ की थी। उसके बाद अशोक जी को विश्व हिन्दू परिषद् के काम में लगा दिया गया।
इसके बाद परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, गोरक्षा.. आदि अनेक नये आयाम जुड़े। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, जिससे परिषद का काम गाँव-गाँव तक पहुँच गया। इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी। भारतीय इतिहास में यह आन्दोलन एक मील का पत्थर है। आज वि.हि.प. की जो वैश्विक ख्याति है, उसमें अशोक जी का योगदान सर्वाधिक है।
अशोक जी परिषद के काम के विस्तार के लिए विदेश प्रवास पर जाते रहे हैं। इसी वर्ष अगस्त सितम्बर में भी वे इंग्लैंड, हालैंड और अमरीका के एक महीने के प्रवास पर गये थे। परिषद के महासचिव श्री चम्पत राय जी भी उनके साथ थे। पिछले कुछ समय से उनके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था। इससे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। इसी के चलते 17 नवम्बर, 2015 को दोपहर में गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में उनका निधन हुआ। #Shradhanjali

Friday 13 November 2015

Tolerance v/s Intoletance

My wife asked me this morning over breakfast: Everybody is returning something or the  other to the govt to protest growing intolerance.  Why don't you also return something? Otherwise what will the neighbors think.
Bala: But,  I really don't think that intolerance is growing.  In fact,  I feel there is growing tolerance.
Wife: You mean to say that Shah Rukh Khan and 123 others who returned their awards are fools and you are the only smart one?
Bala: Listen,  in Kashmir 3.5 lakh Hindus were thrown out and we tolerated that. In Kerala,  the hand of Prof Joseph was chopped by Islamists in front of his students and we tolerated that. Lakhs of Muslims migrated from Bangladesh and have swamped Assam and we tolerate that. Muslims do not want a common civil code and we tolerate that. And you say we are intolerant?
Wife: The media never reported all these things. So how they can be true?
Bala: That exactly what I am saying. On Oct 9 , a youth,  Mr  Poojari,  was chopped to death in Mangalore because he opposed an illegal slaughter house. Indian Express reported it only on Oct 21.
Wife: Why is the media doing like this?
Bala: We are a secular country,  you see. Any atrocity committed on Hindus is not to be reported. It is not politically correct.
Wife: Why?  Aren't Hindus also citizens of this country?
Bala: You see they are supposed to tolerate everything.
Wife: It is because millions of Hindus watch their movies that Shah Rukh Khan,  Salman Khan and Aamir Khan rule Bollywood today and have made thousands of crores.
Bala: There was a time when a Yusuf Khan had to change his name to Dilip Kumar and a  Mehzabeen Bano had to change her name to Meena Kumari to be acceptable to a Hindu audience.  But,  all Muslim actors are now accepted with open arms with their real names. It's a different matter that one of them, the ingrate  Aamir Khan,  showed a man playing Lord Shiva locked up in a toilet in PK. We tolerated that too.
Wife: So what is the way out?
Bala: I am a Hindu. I am not supposed to speak out my mind lest the secularists and the media pounce on me. I will be called intolerant if I speak the truth.

मुम्बई का एक सच

मान्या सुर्वे 70 और 80 के दशक के बीच का सबसे शक्तिशाली हिन्दू गैंगस्टर था। उस वक़्त मुम्बई में हर जगह सिर्फ उसी का सिक्का चलता था। मुम्बई की पहली “हिन्दू गैंग” मान्या सुर्वे ने ही बनायी थी। ये बात कम लोग जानते हैं कि मान्या सुर्वे असल में दाऊद
इब्राहिम और उसके बड़े भाई सबीर इब्राहिम का जानी दुश्मन था। वह दाऊद और पूरे मुम्बई में फैलते पाकिस्तान समर्थित अफगानी माफिया संघ के खिलाफ बाकायदा चुनौती देकर खुली जंग लड़ता था।

मान्या सुर्वे का एनकाउंटर उस समय के एसीपी ईशाक बागवन ने किया था। ये घटना 11 जनवरी 1982 को घटित हुई थी। मान्या सुर्वे को धोखे से पकड़कर एसीपी ईशाक ने मान्या की हत्या कर उसकी हत्या को एनकाउण्टर का रूप दे दिया। मान्या की मौत जहाँ कई लोगों के लिए एक चौंका देने वाली खबर थी वहीँ कुछ लोगों के लिए राहत देने वाली खबर बन गई थी। उस राहत और सुकून की सांस लेने वालों में से एक नाम दाऊद भी था जिसके बड़े भाई सबीर इब्राहिम को मान्या ने सरे आम गोली से उड़ा दिया था और खुद दाउद भी कई बार मान्या की गोलियाँ का शिकार होते-होते बचा था।

ये भी माना जाता है कि मान्या सुर्वे
उस दौरान दाऊद से कई गुना ज्यादा ताकतवर था। मान्या की मौत दाऊद के लिए फायदेमंद थी और आगे बढ़ने के लिए बेहद जरूरी भी। मान्या के एनकाउंटर ने दाऊद और पाकिस्तान समर्थक अफगान माफियाओं को मुम्बई पर हावी होने का मौका दे दिया। मान्या के डर से जो अफगानी गैंगेस्टर चूहे के जैसे बिल में दुबके बैठे थे वे अब खुल के सक्रिय हो गये और जिसकी परिणति मुम्बई बम धमाके 1992 के रूप में सामने आयी।

मान्या के समय तक मुम्बई चैन से जी रही थी, मान्या के मरते ही माफियाओं के निशाने से अछूते रहे बिल्डर, फिल्म इण्डस्ट्री के निर्माता-निर्देशक, अभिनेता, उद्योगपति सब इन अफगान माफियाओं के निशाने आ गये थे। इनसे पैसा वसूलकर आतंकवाद की फेक्ट्री पाकिस्तान भिजवाया जाता था। जहाँ यह पैसा ISI भारत में आतंकवाद फैलाने के काम में लेती थी।

हाजी मस्तान के समय तक घड़ियों, रेडियो जैसे इलेक्ट्रोनिक आइटम और सोने के बिस्किट की तस्करी करने वाला मुम्बई अफगान माफिया मान्या की मौत के बाद ड्रग्स, हथियार, लूट-पाट, फिरोती, वसूली और जबरन उगाई जैसे कामों में खुलकर उतर आया और मुम्बई को भारत की आपराधिक राजधानी बना डाला।

कुछ भी हो मानना पड़ेगा कि मान्या सुर्वे ने एक दशक तक पाकिस्तान समर्थित अफगान माफियाओं की नाक में नकेल डाल कर रखी, जो काम मुम्बई पुलिस नहीं कर सकी वह एक अकेले “हिन्दू गैंग” के मुखिया “मान्या सुर्वे ने कर दिखाया।

Thursday 12 November 2015

भारतीय राष्ट्रवाद का सच

हम ब्रिटेन के गुलाम थे।कभी ब्रिटिश हमारे शासक थे। स्वतंत्र होने के बाद भी हमने ब्रिटेन के सामने कभी आंख मिलाकर बात नही की।भारत के किसी प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश धरती पर 60,000 लोगों की रैली करने का साहस नहीं जुटाया।ब्रिटिश संसद में भारत के प्रधानमंत्री के भाषण का पूरे संसद ने खडे होकर कभी सम्मान नही किया।ब्रिटिशों ने कभी भारत को अपने साथ खडे होने का अवसर अपनी धरती पर नहीं दिया।यद्यपि ब्रिटिश अर्थब्यवस्था को मजबूत करने में भारतीयों की ही भूमिका है।राजमहल ने कभी भारतीय प्रधानमंत्री को अपेक्षित सम्मान आज तक नहीं दिया।सुरक्षापरिषद में भारत को समर्थन देने की खुलेआम घोषणा ब्रिटिशों ने कभी नहीं की।अरबों पौंड के निवेश की घोषणा ब्रिटेन ने कभी नही की।ब्रिटेन ने भारत का लोहा कभी नही माना।आज नरेन्द्र मोदी ने वह सब करके दिखा दिया जिसकी अपेक्षा भारतीय करते रहे।भारत ने अपने पूर्व अधिपति से समान स्तर पर सम्मान पाया।भारत की शक्ति को ब्रिटेन ने स्वीकार कर लिया।हम आज भारतीय प्रधानमंत्री पर गर्व कर सकते हैं।मोदी ने दुनिया में तिरंगे का मान बढाया।भले ही हम अपने प्रधानमंत्री को घर में जितना चाहे गाली दें,लेकिन दुनिया भारत का लोहा मानने लगी है यह सच है।मोदी इसके सूत्रधार हैं।

Tuesday 10 November 2015

दीपावली की शुभकामनाएँ।

ख़्वाहिशों से नहीं गिरते महज़ फूल झोली में,
कर्म की शाख को हिलाना होगा।
न होगा कुछ कोसने से अंधेरें को,
अपने हिस्से का 'दीया खुद ही जलाना होगा।
पर्व है पुरुषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का,
देहरी पर दीप एक जलता रहे,
अंधकार से युद्ध यह चलता रहे,
हारेगी हर बार अंधियारे की
घोर-कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की
स्वर्ण-लालिमा,
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ है,
कायम रहे इसका अर्थ, वरना
व्यर्थ है,
आशीषों की मधुर छांव इसे दे दीजिए,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए!!
झिलमिल रोशनी में निवेदित
अविरल शुभकामना
आस्था के आलोक में आदरयुक्त मंगल भावना!!!
"शुभ दीपावली"।सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ।

Thursday 5 November 2015

असहिष्णुता की काल्पनिकता


जिस साहित्यकार काशीनाथ सिंह ने कहा था कि अगर मोदी बनारस से चुनाव जीतते हैं तो ये बनारस की हार होगी।आज उनको लग रहा है की देश में असहिष्णुता बढ़ी है। जिस साहित्यकार भुल्लर ने बनारस में मोदी के ख़िलाफ़ प्रचार किया था उन्हें लग रहा है देश में असहिष्णुता बढ़ रही है। जो फिल्मकार हिन्दू आस्थाओं का मज़ाक उड़ाती फ़िल्में बनाकर पैसे कमाते थे उन्हें लग रहा है की देश में असहिष्णुता बढ़ रही। जो लोग कांग्रेसभक्ति की वजह से राष्ट्रपति जैसे पदों पर पहुँच गए उन्हें लगता है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।
जिस कमाल खान और शाहरुख़ खान ने कहा था कि मोदी सरकार बनने के बाद देश छोड़ देंगे उन्हें लग रहा है की देश मे असहिष्णुता बढ़ रही है। जिन 170 लोगों ने यूएस गवर्नमेन्ट को पत्र लिखा था कि मोदी को वीजा न दिया जाय।उन्हें लगता है कि देश में असहिष्णुता बढ़
रही है। जिन बुद्धिजीवियों ने आतंकियों अफज़ल,अज़मल और याखूब मेनन की फांसी रोकने के लिए प्रेसीडेंट को चिट्ठी तक लिखा था, उन्हें लग रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।
जो बुद्धिजीवी वर्ग पोर्न और समलैंगिकता का समर्थन करते हैं, उन्हें लग रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।मोदी सरकार की ब्लैक मनी पालिसी की वजह से जिन एनजीओ संचालकों की फंडिंग बंद हो गयी, उन्हें लगता है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।
सारांश पूरी देश में असहिष्णुता बढ़ी है, उस विचारधारा के ख़िलाफ़ जिसने
दशकों तक राष्ट्रवादी विचारधारा को दबाने के लिए उसे साम्प्रदायिकता का नाम दे दिया। आज लोगों के मन में प्रखर राष्ट्रवाद की भावना का जन्म हो रहा है, तो इन्हें अपने अस्तित्व पर खतरा मंडराता दिख रहा है।इसलिए दरबारी भाँटों,बामपंथी इतिहासकारों और दाऊद की फंडिंग पर फ़िल्में बनाने वाले फिल्मकारों को लग रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।
ये विकाश के मुद्दे पर मोदी सरकार की आलोचना कर नहीं सकते । इसलिए "असहिष्णुता" का काल्पनिक मुद्दा बना लिया...

Wednesday 4 November 2015

भारत के खिलाफ एक साजिश

साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का यह जो खेल चल रहा है, आप लोग इसे हल्के मे न ले। मोदी सरकार पर किए गए इस वार मे पर्दे के पीछे कांग्रेस पार्टी-अंतरराष्ट्रीय एनजीओ-मीडया का बडा नेक्सस काम कर रहा है। जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार- मोदी सरकार ने खुफिया विभाग से इसकी जांच कराई है और प्रारंभिक जांच मे यह पता चला है कि है, देश मे चल रहे इस कोलाहल मे अमेरिका- सउदीअरब- पाकिस्तान तक शामिल है। बकायदा इसके लिए एक अंतरराष्ट्रीय पीआर एजेंसी को हायर किया गया है। पुरस्कार लौटाने का खेल तब शुरू हुआ जब कांग्रेस के कुछ बडे नेता, जेएनयू के कुछ प्रोफेसर और कुछ अंग्रेजी पत्रकार साहित्य अकादमी के पुरस्कार लौटाऊ साहित्यकारो से मिले और उन्हे इसके लिए राजी करने का प्रयास किया और अखलाक मामले को मुददा बनाकर पुरस्कार लौटाने को कहा। पहले इसके विरोध मे होने वाली प्रतिक्रिया के भय से कई साहित्यकार तैयार नही थे, जिसके बाद नेहरू की भतीजी नयनतारा सहगल को आगे किया गया। इसके बाद वो साहित्यकार तैयार हुए, जिनके एनजीओ को विदेशी संस्थाओ से दान मिल रहा था, जो मोदी सरकार द्वारा जांच के दायरे मे है और जिनकी बाहर से होने वाली फंडिंग पूरी तरह से रोक दी गयी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 150 से अधिक साहित्यकारो व पत्रकारो को इस पर लेख लिख कर, भारत को असहिष्णु देश साबित करने के लिए, अमेरिका- सउदी अरब- पाकिस्तान के पक्ष मे एक बडी अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एजेंसी ने एक अंतरराष्ट्रीय पी आर एजेंसी को हायर किया है, जिस पर करोडो रुपए खर्च किए गए है। संयुक्त राष्ट्र संघ मे भारत की दावेदारी को रोकने लिए अमेरिकी, सउदी अरब व पाकिस्तान मिलकर काम कर रहे है। इसके लिए भारत को मानवाधिकार पर घेरने और उसे असहिष्णु देश साबित करने की रूपरेखा तैयार की गई है। इसके लिए पहले अमेरिका ने अपनी धार्मिक रिपोर्ट जारी कर भारत को एक असहिष्णु देश के रूप में प्रोजेक्ट किया और उसमे गिन-गिन कर भाजपा के नेताओ व उनके वक्तव्यो को शामिल किया गया। इस समय सउदी अरब का राजपरिवार संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष है और पाकिस्तान के हित मे वह शीघ्र ही भारत को मानवाधिकार उल्लंघन के कटघरे मे खडा करने वाला है। यह रिपोर्ट भी मोदी सरकार के पास है। जांच मे यह भी पता चला है कि, उस अंतरराष्ट्रीय पीआर एजेंसी ने बडे पैमाने पर भारत के पत्रकारो, मीडिया हाउसो व साहित्यकारो को फंडिंग की है और इस पूरे मामले को बिहार चुनाव के आखिर तक जिंदा रखने को कहा गया है। गोटी यह है कि, यदि भाजपा बिहार मे हार गयी तो उसके बाद उसे बडे पैमाने पर अल्पसंख्यको के अधिकारो का उल्लंघन करने वाली सरकार के रूप मे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा। संभवत: इससे मोदी सरकार हमेशा के लिए बैकफुट पर आ जाएगी, जिसके बाद गो-वध निषेध जैसे हिंदूत्व के सारे मुददो को ताक पर रख दिया जाएगा। अमेरिका खुद डरा हुआ है कि वहां क्रिश्चनिटी खतरे मे है और बड़ी संख्या मे लोगो का रुझान हिन्दू धर्म की ओर बढ रहा है। यदि भाजपा बिहार में जीत गयी तो राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय साजिशकर्ता मिलकर देश मे बडे पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा को अंजाम दे सकते है, और मोदी सरकार को पांच साल तक सांप्रदायिकता मे ही उलझाए रख सकते है। मोदी सरकार पूरी तरह से चौकन्नी है और वह स्थिति का आकलन कर रही है।

क्या हम असहिष्णु हैं?

हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने थप्पड़ खाने के लिए दूसरा गाल देना बंद कर दिया है हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने अपनी बहन, बेटी, बहू को लव जिहाद से बचाना सुरू कर दिया है  हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने आतंकवादियों को बम बनाने से रोक दिया है  हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने गौ माता को कसाइयों से बचाना सुरू कर दिया है  हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने अपने भाइयों को कटने से बचाना सुरू कर दिया है  हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने हर जुल्म का जवाब देना सुरू कर दिया है हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने आस्तीन में सांप पालना बंद कर दिया है  हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने अपना अधिकार मांगना सुरू कर दिया है  हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने जात पात में बटना छोड़ दिया है  हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने आपस में लड़ना छोड़ दिया है  हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने जुल्म सहना छोड़ दिया है  हाँ हम हिन्दू असहिष्णु हो गए हैं क्योंकि हमने घुटने टेकना छोड़ दिया हैं...

Tuesday 3 November 2015

विरोध के पीछे का सच

बोलने-लिखने की जितनी आजादी नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देखने को मिली है,  पहले कभी नहीं देखी। प्रधानमंत्री को खुल कर हमारे बुद्धिजीवी फासीवादी कहते हैं रोज टीवी पर, मोहम्मद अखलाक की हत्या का दोष तक उनके सिर लगाते हैं, और बिहार में जितने भी इल्जाम उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी चुनाव अभियान के दौरान लगाते हैं, चाहे झूठे हों या सच्चे, उनको पूरी कवरेज मीडिया में मिल रही है। लेकिन फिर भी देश के इन महान बुद्धिजीवियों को लग रहा है कि भारत में अब बोलने-लिखने की आजादी नहीं रही। बुद्धिजीवियों की रोज कोई नई टोली निकल पड़ती है विरोध जताने, सो पिछले हफ्ते फिल्म निर्माता सम्मान वापस करने निकल कर आए, एक-दो वैज्ञानिक आए साथ में और अगले दिन इतिहासकार भी शामिल हो गए मुखालफत की इस लहर में।

पत्रकारिता की दुनिया में पहला कदम मैंने रखा 1975 में, सो कई प्रधानमंत्री के शासनकाल देखे हैं मैंने। तो सुनिए क्या होता अगर इस तरह का विरोध उनके दौर में होता। इंदिरा गांधी के जमाने में पहले तो प्रेस पर पूरा प्रतिबंध यानी सेंसरशिप देखी मैंने इमरजेंसी के वक्त और जब इमरजेंसी नहीं रही तो यह भी देखा कि उनके प्रेस सचिव शारदा प्रसाद के पास एक फेहरिस्त हुआ करती थी, जिसमें उन पत्रकारों के नाम दर्ज थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के खिलाफ लिखने की हिम्मत की थी। इमरजेंसी के दौरान तो कई पत्रकार तिहाड़ जेल पहुंचा दिए गए थे।

फिर जब आया उनके बेटे का दौर और इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने विरोध करने की कोशिश की उनका बोफर्स वाले मामले को लेकर तो सौ से ज्यादा टैक्स के मुकदमे लगाए गए इस अखबार पर। सोनिया के दौर में तो निजी तौर पर मेरे ऊपर हमले हुए। सोनियाजी के अघोषित प्रधानमंत्री होने पर जब मैंने एतराज जताया तो मेरे कॉलम को इंडियन एक्सप्रेस से हटाने की कोशिश हुई। इसमें जब सोनियाजी नाकाम रहीं तो मेरे दोस्तों को तकलीफ दी गई। ये दौर याद होंगे हमारे बुजुर्ग बुद्धिजीवियों को, सो यह भी याद होगा कि उन्होंने अपनी आवाज नहीं उठाई कभी। उठाते अगर तो कहां से मिलने वाले थे वे सम्मान, वे विदेशों के दौरे, वे लटयंस दिल्ली की गलियों में आलीशान कोठियां?

कहने का मतलब यह है कि हमारे बुद्धिजीवी बहुत सोच-समझ कर विरोध करते हैं। इनमें से एक ने भी यह नहीं कहा कि उनकी किसी किताब या फिल्म पर मोदी सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन फिर भी कहते फिर रहे हैं कि उनकी आजादी खतरे में है, क्योंकि कर्नाटक में कलबुर्गी को मार दिया गया था। इसमें दो राय नहीं कि कलबुर्गी की हत्या शर्मनाक थी, लेकिन जब केरल में जिहादियों ने प्रोफेसर जोसेफ के हाथ काट डाले थे, क्या हमने इन साहित्यकारों का कोई विरोध देखा? प्रोफेसर जोसेफ के हाथ सिर्फ इसलिए काट डाले पापुलर फ्रंट आॅफ इंडिया के जिहादियों ने, क्योंकि किसी एक पाठ में इस्लाम के रसूल का जिक्र था। बस तय कर लिया कि प्रोफेसर साहब को सजा देने का हक है, सो दे दी। प्रोफेसर साहब की कहानी अगर छपी देश के बड़े अखबारों में, तो इतनी छोटी कि न छपने के बराबर।

उदाहरण एक और है मेरे पास, जो साबित करता है कि अपने बुद्धिजीवी धोखेबाज हैं और उनका गुस्सा सिर्फ तमाशा है। इस देश में सिर्फ एक बार किसी कौम को उसके धर्म की वजह से किसी राज्य से भगा दिया गया- जब पंडितों को कश्मीर घाटी से बेदखल कर दिया गया। बीस वर्ष गुजर गए हैं तब से लेकर आज तक, लेकिन हमारे बुद्धिजीवियों को इस घटना से अगर तकलीफ हुई, तो उन्होंने उसे बहुत छिपा के रखा।

समस्या उनकी एक ही है मोदी के दौर में और उस समस्या का नाम है नरेंद्र मोदी। जब तक वे प्रधानमंत्री बने रहते हैं तब तक ऐसे विरोध-प्रदर्शन होते रहेंगे भारत में, क्योंकि हमारे देश के बुद्धिजीवियों को बड़े प्यार से पाला है दशकों से कांग्रेस पार्टी ने। उनको न सिर्फ इज्जत और सम्मान मिला है, उनको नौकरियां, कोठियां, सरकारी ओहदे भी मिले हैं, सो मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद उनकी पूरी दुनिया लुट गई है। पूर्व प्रधानमंत्रियों का समर्थन इन लोगों ने यह कह कर किया था कि उनकी विचारधारा से उनकी अपनी विचारधारा मेल खाती थी। सेक्युलरिज्म के कवच के पीछे खूब आर्थिक लाभ भी मिलता था। जब इन लोगों की किताबें नहीं बिकती थीं या उनके बिकने से इतने थोड़े पैसे मिलते थे कि गुजारा करना मुश्किल था, तो साथ दिया करते थे दिल (और तिजोरियां) खोल कर मानव संसाधन विकास मंत्री महोदय।

राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह को इस मंत्रालय में बिठाया तभी से परंपरा चली आ रही है बुद्धिजीवियों को पालने-पोसने की। कभी दिल्ली में कोठी देने का काम होता था, तो कभी किसी सरकारी संस्था की अध्यक्षता मिल जाया करती थी। ऊपर से प्रधानमंत्री निवास या दस जनपथ से हर दूसरे-तीसरे दिन न्योते आते थे किसी विदेशी मेहमान से मुलाकात करने के। इसका फायदा यह होता था कि विदेशी मेहमान इन लेखकों को अपने वतन आने का दावत दे दिया करते थे और दौरे का तमाम खर्चा उठाया करती थी कोई न कोई विदेशी सरकार। इस तरह के विदेशी दौरों पर गए हैं साहित्यकार, कलाकार, इतिहासकार और अन्य किस्म के बुद्धिजीवी कई-कई बार। मोदी के आने के बाद ये तमाम नेमतें औरों को मिल रही हैं।

सो, झगड़ा सिर्फ विचारधारा का नहीं है। झगड़ा विचारों का भी नहीं है। झगड़ा सीधे तौर पर रोजी-रोटी का है। सम्मान वापसी की इस लहर के पीछे यह है असली राज।