Thursday 24 March 2016

वीर सावरकर

राष्ट्र मेरा धर्म...भारत मेरा प्राण :::  वीर सावरकर

वीर सावरकर के प्रथम कीर्तिमान-

1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?

2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ...

3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी...

4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र 'इन्डियन ओपीनियन' में गाँधी ने निंदा की थी...

5. सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया...

6. सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुरमाना किया... इसके विरोध में हड़ताल हुई... स्वयं तिलक जी ने 'केसरी' पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा...
7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली... इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया...

8. वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया..
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9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे '1857 का स्वातंत्र्य समर' पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था...

10. '1857 का स्वातंत्र्य समर' विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी... भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी... पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी...

11. वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे...

12. सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया...

13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी...

14. सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले- "चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया."

15. वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला पानी की सजा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला...

16. वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखी और 6000 पंक्तियाँ याद रखी...

17. वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आजादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा...

18. वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-
'आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका.
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.'
अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है...

19. वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया... देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था...

20. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था...

21.वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था....

22. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया...

23. वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया...
वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था जबकि गाँधी ने कालापानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा नही चलाया....

24. महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी-देशभक्त, उच्च कोटि के साहित्य के रचनाकार, हिंदी-हिन्दू-हिन्दुस्थान के मंत्रदाता, हिंदुत्व के सूत्रधार वीर विनायक दामोदर सावरकर पहले ऐसे भव्य-दिव्य पुरुष, भारत माता के सच्चे सपूत थे, जिनसे अन्ग्रेजी सत्ता भयभीत थी, आजादी के बाद नेहरु की कांग्रेस सरकार भयभीत थी और अब कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी के सहयोग से चलने वाली UPA सरकार भयभीत है...

25. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया... पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का सूर्य उदय हो रहा है...
मेरा ध्येय है- "राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि"
जय हिंद...जय माँ भारती...
विनायक दामोदर सावरकर

Wednesday 9 March 2016

भाजपा का निहितार्थ

POLITICS
हिन्दू पार्टी के रूप में अपनी मुख्य पहचान को छोड़कर भाजपा का फ़ायदा नहीं
R Jagannathan
Yesterday, 7:19 pm
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भाजपा को चाहिए कि वह बिना किसी अपराधबोध के अपनी हिन्दू पार्टी कि छवि को स्वीाकरे और हिन्दू पार्टी होते हुए एक सकारात्मक व समावेशी राजनीति का एजेंडा अपनाये

यदि भाजपा अब ऐसा पाती है कि उसने अपने धुर विरोधियों से ज़्यादा अपने समर्थकों को निराश किया है, तो ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी ने सफलता के मूलभूत नियम को दरकिनार कर दिया: कि आपको अपनी ताकत को ध्यान में रखकर खेलना चाहिए न कि अपनी कमज़ोरियों को। जो आप नहीं है वो होने का दिखावा करना पराजय का तयशुदा रास्ता है। जब अवधारणायें ही वास्तविकता हों, तब आपको जनता की उन अवधारणाओं को अपने खूबियों की ओर खींचनें की कोशिश में लग जाना चाहिए ना कि उन खूबियों से दूर भागने में।

अगर वीरेन्द्र सहवाग हमारे महानतम ओपनरों में से एक बने हैं तो वो इसलिए नहीं कि उनके पास टेक्स्ट-बुक की तकनीकें थी। वो महानतम इसलिए बन पाए क्योंकि वो हमेशा अपनी स्ट्रैंथ पर खेले और कभी भी दूसरा सुनील गावस्कर या गुंडप्पा विश्वनाथ बनने की कोशिश नहीं की। वीरेन्द्र सहवाग महान इसलिए हैं क्योंकि वह वीरेन्द्र सहवाग हैं। बेशक, उनकी एक बहुत बड़ी कमज़ोरी थी जोखिम भरे शॉट्स खेलना, जिसकी वजह से वो अकसर बहुत जल्दी आउट हो जाते थे, लेकिन वो अपनी कमज़ोरियों को दूर करने पर ध्यान केन्द्रित करके कभी महान नहीं बन सकते थे, वो अपनी स्ट्रैंथ पर ही खेले।

एक नई राह दिखाने वाली अपनी किताब ‘‘फर्स्ट, ब्रेक आल द रूल्स’’, में प्रबंधन गुरू मार्कस बकिंघम और कर्ट कॉफ़मैन ने बताया है कि महान प्रबंधको ने कैसे अपने कर्मचारियों की क्षमताओं के निर्माण पर काम करते हुए और उनकी कमज़ोरियो से बचने का रास्ता ढूंढते हुए उनसे अनुकूलतम परिणाम देने वाली कार्यक्षमता को विकसित किया। नियति से लड़ने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की, उसके बजाए उन्होंने उनकी सहायता की अपनी जन्मजात प्रतिभा पर ध्यान केन्द्रित करने में।

बात जब भी कमज़ोरियों की आयी, या तो उन्होंने उसे ढकने के रास्ते खोजने की कोशिश की या उन कमज़ोरियो को समायोजित करने की। कमज़ोरियां हटाई नहीं जा सकती। कमज़ोरी किसी भी मानवचरित्र या मानव निर्मित संस्थान का उतना ही मूलभूत अंग है जितना कि उसकी ताकत।

भाजपा को यही बात समझना नितांत आवश्यक है। वह वो नहीं हो सकती, जो वो नहीं है— एक परम्परागत भारतीय साँचे में ढली सेक्यूलर पार्टी। यदि वो ऐसा होने की कोशिश भी करती है तो अपने विरोधियों द्वारा बहुत जल्द वो सांप्रदायिक दर्जे में पुनः स्थापित कर दी जाएगी। बीजेपी एक हिन्दू पार्टी है, और यही उसका उपयुक्त उद्गम है। भाजपा एक हिंदु पार्टी है , यह सीना ठोंककर दावा करने की कोई ज़रूरत नहीं है। ये काम करने के लिए उसके धुर विरोधी जो हैं।

बीजेपी को अपनी इस हिन्दू वादी छवि को अपनी कमज़ोरी के बजाए अपनी ताक़त के रूप में देखना चाहिए। उसके सामने चुनौती है कि वो ये साबित करे कि उसका मूलभूत हिन्दू-समर्थक स्वभाव उसे अल्पसंख्यकों के हितों का शत्रु नहीं बनाता। भाजपा की विश्वसनीयता इससे कदापि नहीं बढ़ने वाली कि वो सेक्यूलर पार्टी दिखने के लिए चंद मुस्लिम चेहरों को जनता पर थोप दे। इस प्रपंच से जनता को बरगलाया नहीं जा सकता।

यदि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को पार्टी के मूलभूत स्वभाव का स्पष्टीकरण देना हो (या ये स्पष्ट करना हो कि पार्टी का मकसद क्या होना चाहिए) तो उन्हें इस प्रकार का वक्तव्य देना चाहिए:

‘‘हाँ, बीजेपी हिन्दू पार्टी मानी जाती है और हम इस परिभाषा को स्वीकार करते हैं। हमारे लिए ध्यान देने योग्य बात है दूसरे समुदायों के अधिकारों, हितों का अतिक्रमण किए बग़ैर हिन्दू हितों की रक्षा करना। ये परिभाषा हमें पंथिक या साम्प्रदायिक नहीं बनाती वैसे ही जैसे कि इण्डियन मुस्लिम लीग या मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन को पंथिक नहीं बनाती।

“हमारी परिभाषा का स्रोत ये सर्वविदित तथ्य है कि भारत की जनसंख्या में 80 प्रतिशत हिन्दू हैं, और यदि आप 80 प्रतिशत के हितों की रक्षा नहीं कर सकते तो आप शेष 20 प्रतिशत की भी रक्षा नहीं कर सकते। हमें इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि इस विश्व में जिसमें बहुत सारे देश आधिकारिक रूप से ईसाई, मुस्लिम और यहाँ तक कि बौद्य धर्मावलंबी हैं, वहाँ हिंदुओं का एकमात्र घर भारत ही है। यदि भारत में भी हिन्दु अपने हितों की रक्षा न कर सकें तो उनके लिए और कोई स्थान नहीं बचता जहाँ वो जा सकें। यदि भारत में भी हिन्दु ख़ुद को हाशिये पर महसूस करे तो ये एक वैश्विक त्रासदी होगी। 1947 के बाद का अनुभव ये साबित करता है कि हमारे पड़ोस में अत्याचार का शिकार हुए हिन्दूओं की अंतिम शरणास्थली भारत ही था। इसलिए हमें भारत में हिन्दू हितों की रक्षा के लिए किसी आवरण की ज़रूरत नहीं।”

“इसका ये मतलब नहीं कि भाजपा अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हितों को धीरे-धीरे कम कर देगी, लेकिन हम ये मानते हैं कि मौजूदा दौर में हम उनके हितों का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते।”

“अल्पसंख्यक समुदाय के प्रगतिशील लोगों के लिए भाजपा के द्वार खुले हैं। भाजपा मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक दलों को सुरक्षित महसूस कराएगी और आर्थिक प्रगति करने में उनका सहयोग करेगी।”

“हमारा नारा है ‘‘सबका साथ, सबका विकास’’ अर्थात हम गरीबों का धर्म देखे बिना उनकी हर सम्भव मदद करेंगे। भाजपा जातिगत भेदभाव एवं लिंगभेद के शिकार लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करवाने को भी प्रतिबद्ध है।”

“हिन्दू पार्टी होने का मतलब है उन सभी लोगों के लिए काम करना जिन्हें हम हिन्दू मानते है, और इनमें दलित भी हैं। दरअसल, अब से हमारी यही प्राथमिकता है और हमारा यह विश्वास भी है कि लम्बे समय से चली आ रही हिंदु समाज की इन विसंगतियों को दूर किए बिना हम सही मायने में हिंदु पार्टी नहीं हो सकते।”

आगामी वर्षों में भाजपा की प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए यही मार्गदर्शिका होनी चाहिए ।

भाजपा इस अवधारणा से दूर नहीं भाग सकती कि वो एक हिन्दू पार्टी है। कोई भी हिन्दू भाजपा को वोट देने से महज़ इसलिए मना नहीं कर देगा कि उस पर एक हिन्दू पार्टी होने का आरोप है, जैसे कि कोई भी दलित, मायावती की दलित के रूप में उत्पत्ति को उन्हें वोट न देने के कारण के रूप में नहीं देखेगा।

हिन्दू पार्टी के रूप में अपने स्थान को स्वीकार करने से भाजपा अल्पसंख्यकों के विकास के लिए काम करते हुए, बिना किसी अपराधबोध के, हिंदुओं के हितों के लिए भी काम कर पाएगी | हिन्दू हितों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली बीजेपी तब विश्वसनीय होगी, और तब उसके द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए जो कुछ भी किया जाएगा, उसे बहुसंख्यकों का भी समर्थन हासिल होगा। अल्पसंख्यकों के लिए किया गया ऐसा कोई भी कार्य दीर्घ काल तक स्थायी होगा। एक सेक्यूलर पार्टी द्वारा मुसलमानों के लिए किये गये किसी भी काम पर बहुसंख्यकों द्वारा आपत्ति जताए जाने की संभावना हमेशा बनी रहेगी।

अपनी हिंदुवादी छवि को स्वीकार करने का बीजेपी को एक और फायदा होगा: जब वो अपनी हिंदुत्ववादी छवि नकारती है तो हाशिए पर रहने वाले हिंदुवादी तत्व हिंदु समाज का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं। क्या भाजपा चाहती है कि साक्षी महाराज और विभिन्न साध्वियां, जिनसे अधिकांश हिंदू किनारा करते हैं, वो हिंदुओं के मुख्य प्रतिनिधि बन जाएँ ? अतः यदि भाजपा ने अपनी मूल पहचान को नकारा, तो हाशिए पर रहने वाले ये तत्व अग्रणीय स्थिति में आ जाएंगे।

संक्षिप्त में- अपनी मूल पहचान, हिंदु वादी छवि से दूर भागकर भाजपा खोएगी सब पाएगी कुछ भी नहीं।