Monday 18 April 2016

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'संघ मुक्त भारत' संभव नहीं नीतीश बाबू

शरद यादव और दूसरे नेताओं को दरकिनार करते हुए जदयू के अध्यक्ष बने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबू आजकल बड़ा सपना देख रहे हैं। उनकी नजर 2019 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। हालांकि नीतीश कुमार कहते हैं कि प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा, यह जनता तय करेगी। यह 'मन-मन भावे, मुडी हिलावे' वाली स्थिति है। यानी कोई व्यक्ति संकोचवश किसी पद/वस्तु के लिए कह तो नहीं पाता, लेकिन मन ही मन उसे पाना चाहता है और उसी उधेड़बुन में लगा रहता है। नीतीश कुमार भी यथासंभव अपने अनुकूल वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें मालूम है कि तीसरे मोर्चे का गठन करने का प्रयास उनसे पहले भी कई दिग्गज कर चुके हैं, लेकिन निज स्वार्थों के कारण उनके प्रयास सफल नहीं हो पाए। इसलिए नीतीश कुमार साल 2019 आते-आते अलग तरह की रणनीति अपनाकर भाजपा विरोधी दलों का नेतृत्व करना चाहते हैं। वह जानते हैं कि भाजपा की ताकत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी वैचारिक पृष्ठभूमि है। वह यह भी जानते हैं कि भाजपा विरोधी पार्टियां भाजपा से कहीं अधिक संघ से भय खाती हैं। खासकर वामपंथी दल और कांग्रेस अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भाजपा से कहीं अधिक संघ को घेरने का प्रयास करते हैं। नीतीश कुमार को यह अहसास हो रहा है कि भाजपा विरोधी दलों को संघ का हौव्वा दिखाकर अपने पाले में लाया जा सकता है। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक नारे 'कांग्रेस मुक्त भारत' से प्रेरित होकर नीतीश कुमार ने 'संघ मुक्त भारत' का नारा दिया है।

        पटना में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा है कि 'संघ मुक्त भारत' बनाने के लिए सभी गैर भाजपा दलों को एक होना होगा। भाजपा और संघ की बाँटने वाली विचारधारा के खिलाफ एकजुटता ही लोकतंत्र को बचाने का एकमात्र रास्ता है। यह नारा देकर नीतीश बाबू ने राष्ट्रवाद की धमक से पीडि़त राजनीतिक दलों और विचारधाराओं की सहानुभूति अवश्य बटोर ली होगी। लेकिन, क्या नीतीश कुमार बता सकते हैं कि संघ मुक्त भारत कैसे संभव है? वर्ष 1925 में बोये गए एक बीज ने आज 90 साल बाद वटवृक्ष बनकर सम्पूर्ण भारत में अपनी जड़ें गहरी कर ली हैं। ऐसे वटवृक्ष को नीतीश कुमार कैसे उखाड़ पाएंगे? सबसे बड़ा सवाल नीतीश बाबू किस आधार पर भारत को संघ मुक्त बनाने का आह्वान करेंगे? इस संबंध में नीतीश कुमार का अन्य संघ विरोधियों की तरह चलताऊ तर्क है, जिसमें कोई दम नहीं। उनका कहना है कि संघ की विचारधारा बाँटने वाली है। यह बात तो कांग्रेस अपने स्वर्णकाल से कहती आ रही है, लेकिन उसकी देश ने नहीं सुनी। वामपंथी दल और वामपंथी विचारकों ने संघ को बदनाम करने के तमाम षड्यंत्र रच लिए, संघ के विरुद्ध पोथियां रच डालीं, लेकिन क्या हुआ? वामपंथियों को खुद का अस्तित्व बचाने के ही लाले पड़ रहे हैं। नीतीश कुमार यह कैसे भूल गए कि अनेक षड्यंत्रों और प्रतिकूल स्थितियों में भी संघ का विचार फला-फूला है। यानी संघ के विचारदर्शन में इस देश ने भरोसा जताया है।

        संघ की विचारधारा बाँटने की नहीं है। संघ समाज को बाँटता नहीं, जोड़ता है। उदाहरण के लिए ताजा प्रकरण जेएनयू है। जेएनयू में 'देश को तोडऩे' और 'देश को बाँटने' के नारे लग रहे थे, तब संघ ही उन नारों के खिलाफ खड़ा हुआ था। जबकि नीतीश कुमार 'जेएनयू की देशद्रोही घटना' के पीछे खड़ी ताकतों से हाथ मिलाना चाहते हैं ताकि वर्ष 2019 में भाजपा और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ खड़े होने की हैसियत हासिल कर सकें। संघ ही वह संगठन है, जिसने सामाजिक समरसता लाने के लिए 'एक कुंआ, एक मंदिर और एक श्मशान' की स्थिति बनाने का संकल्प लिया है। सामाजिक समरसता के कार्यों के लिए महात्मा गाँधी भी आरएसएस की प्रशंसा कर चुके हैं। वर्ष 1977 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी संघ के कार्यों को देखते हुए कहा था कि संघ ही एकमात्र संगठन है जो समाज में व्याप्त जातिवाद को खत्म कर सकता है। गरीबों की आँख से आँसू पोंछ सकता है। सामाजिक परिवर्तन का नेतृत्व करने की क्षमता सिर्फ संघ में है। जो लोग संघ को मुस्लिम विरोधी ठहराने की कोशिश करते हैं उन्हें संघ के विषय में गहरा अध्ययन नहीं है। संघ की शाखा हमेशा से मुसलमानों के लिए खुली रही है। लेकिन, संकोचवश मुस्लिम समाज ने ही शाखा से दूरी बनाकर रखी थी। अब संघ के नेतृत्व में राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच मुसलमानों के बीच काम कर रहा है। देश के तीसरे राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने भी कहा था कि आरएसएस पर लगाए जाने वाले सांप्रदायिकता और मुसलमानों के विरुद्ध नफरत फैलाने के आरोप मिथ्या हैं। देश को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसा लोकप्रिय राष्ट्रपति देने के पीछे संघ का ही निर्णय था। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का संघ प्रेम किसी से छिपा है क्या? क्या नीतीश कुमार इन सब विभूतियों के विचारों से अनजान हैं?
      आज संघ न केवल भारत में विस्तार पा रहा है, बल्कि दुनिया के अनेक देशों में भी अपनी विचारधारा को स्थापित करने में सफल हो गया है। क्या बाँटने वाली विचारधारा को इतनी स्वीकार्यता मिल पाती है? संघ के संबंध में नीतीश कुमार की वास्तविक समझ क्या है, यह तो वह ही बेहतर जानते होंगे। नीतीश कुमार की गिनती देश के पढऩे-लिखने वाले नेताओं में होती है। फिर वह कैसे भूल गए कि देश को जब भी बाँटने का षड्यंत्र रचा गया, तब आरएसएस ने मुखर विरोध किया है। 1947 में भारत-पाकिस्तान बँटवारे का वाकया हो या फिर आज जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिश। प्रत्येक क्षण में संघ भारत के साथ खड़ा दिखा है। संघ के विरुद्ध गलतबयानी करके नीतीश बाबू जिनको रिझाने की कोशिश कर रहे हैं, उनमें से एक विचारधारा (वामपंथ) 1962 में चीन से युद्ध के समय दुश्मन देश के साथ खड़ी थी। गोवा मुक्ति संग्राम के संघर्ष की गाथा के पन्ने भी नीतीश कुमार को पलटने चाहिए। पुर्तगालियों से गोवा को मुक्त कराकर वहाँ तिरंगा झंडा फहराने के लिए संघ के कार्यकर्ताओं ने अपना खून बहाया है। देश की संप्रभुता के लिए आरएसएस के स्वयंसेवकों ने अपनी शहादत दी है। आरएसएस पर समाज को बाँटने वाली विचारधारा का पोषक होने का आरोप स्पष्टत: तथ्यहीन और बेबुनियाद है। हताश और निराश विचारधाराएं/ विचारक/ राजनेता वर्षों से संघ पर अनर्गल आरोप लगाते रहे हैं। उनकी जमात में अब नीतीश कुमार भी शामिल हो गए हैं। लेकिन, संघ अपनी गति से समाज का भरोसा जीतते हुए आगे बढ़ रहा है।

       एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि संघ मुक्त भारत बनाने के लिए नीतीश बाबू ने राजनीति दलों से एकजुट होने का आह्वान किया है। कांग्रेस, वामदल और अन्य क्षेत्रीय दलों की एकजुटता से एकबारगी भाजपा को चुनौती दी जा सकती है, संघ को नहीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रत्यक्ष राजनीति में शामिल नहीं है, तब राजनीतिक दल उसे किस प्रकार चुनौती देंगे। संघ पर प्रतिबंध लगाने का परिणाम कांग्रेस आज भुगत रही है। संघ से निपटने के लिए उसके धरातल पर संघर्ष करने का सामथ्र्य यह दल कैसे जुटाएंगे? और संघ को कहाँ-कहाँ से किस प्रकार खत्म करने की योजना नीतीश बाबू के पास है? संघ तो अनेक शाखाओं में विस्तारित होकर समाज के प्रत्येक हिस्से में पूर्ण समर्पण के साथ काम कर रहा है। वनवासी कल्याण आश्रम के माध्यम से वनवासी क्षेत्रों में संघ का बहुत बड़ा काम खड़ा है। विवेकानंद केन्द्र के जरिए युवाओं में गहरी पकड़ है। वंचित समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए सेवाभारती के जरिए कार्यरत है। शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती से बड़ा प्रकल्प किस संगठन का है? महिलाओं के बीच राष्ट्र सेविका समिति का मजबूत काम खड़ा हो चुका है। आरोग्य भारती, संस्कार भारती, क्रीड़ा भारती, सक्षम (दिव्यांगों के बीच काम करने वाला संगठन), अधिवक्ता परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ, ग्राहक पंचायत, विज्ञान भारती और भारतीय शिक्षण मंडल जैसे अनेक अनुषांगिक संगठन समाज के प्रत्येक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। संघ भारत की नस-नस में समा गया है। भारत को संघ से मुक्त कैसे किया जा सकता है? जदयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की खातिर इतने व्यापक संगठन से भारत को मुक्त कर पाएंगे, यह असंभव-सा प्रतीत होता है। नीतीश कुमार को यह बात भी समझनी चाहिए कि संघ ने 90 साल में भरोसा कमाया है। कांग्रेस, वामपंथी दलों और क्षेत्रीय दलों की स्वार्थ की राजनीति के गठजोड़ से संघ का चोट नहीं पहुँचाई जा सकती है। सत्ता की चकाचौंध में निश्चित ही नीतीश कुमार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का देशप्रेम, समाज के प्रति उसकी संवेदना और तपस्या दिखाई नहीं दे रही होगी।

Saturday 16 April 2016

बडों का सम्मान और ख्याल जरूरी

एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया।
खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया।

रेस्टॉरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था।

खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की,चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया।

सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ
बाहर जाने लगा।

तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ
अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "

बेटे ने जवाब दिया" नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर
नहीं जा रहा। "

वृद्ध ने कहा " बेटे, तुम यहाँ
छोड़ कर जा रहे हो,
प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)। "

आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीँ करते

और कहते हैं क्या करोगे आप से चला तो जाता
नहीं ठीक से खाया भी नहीं जाता आप तो घर पर ही रहो वही अच्छा होगा.

क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया
करते थे,

आप जब ठीक से खा नही
पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी

फिर वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते हैं???
माँ बाप भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये...

क्योंकि एक दिन आप भी बूढ़े होँगे फिर अपने बच्चों से सेवा की उम्मीद मत करना.

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Thursday 14 April 2016

एक सच्ची घटना--सबक लें

नवरात्रि जो माँ का त्योहार होता है-- में एक सच्ची हृदय विदारक घटना।जिसे सोच कर मन फट जाता है----आखिर यह पाखंडी लोग आदर्श बघारते हैं उनकी वास्तविकता क्या है----थोड़ा समझिये।।

दो दिन पूर्व रात एक ऐसा वाकया हुआ जिसने मेरी ज़िन्दगी के कई पहलुओं को छू लिया. मुझे जीवन से ही नफरत होने लगी।
करीब 9 बजे होंगे,
शाम को मोबाइल बजा ।
उठाया तो उधर से रोने की आवाज़....
मैंने शांत कराया और पूछा कि भाभीजी आखिर हुआ क्या?
उधर से आवाज़ आई..
आप कहाँ हैं और कितनी देर में आ सकते हैं ?
मैंने कहा:-"आप परेशानी बताइये..!"
और "भाई साहब कहाँ हैं...?माताजी किधर हैं..?" "आखिर हुआ क्या...?"
लेकिन
उधर से केवल एक रट कि आप आ जाइए, मैंने आश्वाशन दिया कि कम से कम एक घंटा लगेगा.जैसे तैसे पूरी घबड़ाहट में पहुँचा.
देखा तो भाई साहब (हमारे मित्र जो हैं) सामने बैठे हुए हैं.
भाभीजी रोना चीखना कर रही हैं,13 साल का बेटा भी परेशान है. 9 साल की बेटी भी कुछ नहीं कह पा रही है.
मैंने भाई साहब से पूछा
कि आखिर क्या बात है.
भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे थे.
फिर भाभी जी ने कहा ये देखिये तलाक के पेपर, ये कोर्ट से तैयार कराके लाये हैं, मुझे तलाक देना चाहते हैं,
मैंने पूछा -ये कैसे हो सकता है. इतनी अच्छी फैमिली है. 2 बच्चे हैं. सब कुछ सेटल्ड है. प्रथम दृष्टि में मुझे लगा ये मजाक है.
लेकिन मैंने बच्चों से पूछा दादी किधर हैं,
बच्चों ने बताया पापा ने उन्हें 3 दिन पहले नोएडा के वृद्धाश्रम में शिफ्ट कर दिया है.
मैंने घर के एक आदमी से कहा
मुझे और भाई साहब को चाय पिलाओ,
कुछ देर में चाय आई. भाई साहब को बहुत कोशिशें कीं पिलाने की.
लेकिन उन्होंने नहीं पिया. और कुछ ही देर में वो एक मासूम बच्चे की तरह फूटफूट कर रोने लगे. बोले मैंने 3 दिन से कुछ भी नहीं खाया है. मैं अपनी 61 साल की माँ को कुछ लोगों के हवाले करके आया हूँ.
पिछले साल से मेरे घर में उनके लिए इतनी मुसीबतें हो गईं कि पत्नी (भाभीजी) ने कसम खा ली. कि मैं माँ जी का ध्यान नहीं रख सकती. ना तो ये उनसे बात करती थी
और ना ही मेरे बच्चे बात करते थे. रोज़ मेरे काम से आने के बाद माँ खूब रोती थी. सेवक तक भी अपनी मनमानी से व्यवहार करते थे.
माँ ने 10 दिन पहले बोल दिया.. बेटा तू मुझे ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट कर दे.
मैंने बहुत कोशिशें कीं पूरी फैमिली को समझाने की, लेकिन किसी ने माँ से सीधे मुँह बात नहीं की.
जब मैं 2 साल का था तब पापा की मृत्यु हो गई थी. दूसरों के घरों में काम करके मुझे पढ़ाया. मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं एक बड़ा आदमी हूँ . लोग बताते हैं माँ कभी दूसरों के घरों में काम करते वक़्त भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती थीं.
उस माँ को मैं ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट करके आया हूँ. पिछले 3 दिनों से मैं अपनी माँ के एक-एक दुःख को याद करके तड़प रहा हूँ, जो उसने केवल मेरे लिए उठाये.
मुझे आज भी याद है जब..
मैं 10th की परीक्षा में अपीयर होने वाला था. माँ मेरे साथ रात रात भर बैठी रहती.
एक बार माँ को बहुत फीवर हुआ मैं तभी स्कूल से आया था. उसका शरीर गर्म था, तप रहा था. मैंने कहा माँ तुझे फीवर है हँसते हुए बोली अभी खाना बना रही थी इसलिए गर्म है.
लोगों से उधार माँग कर मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय से  पढ़ाया. मुझे ट्यूशन तक नहीं पढ़ाने देती थीं कि कहीं मेरा टाइम ख़राब ना हो जाए. कहते-कहते रोने लगे..
और बोले--जब ऐसी माँ के हम नहीं हो सके तो हम अपने बीबी और बच्चों के क्या होंगे. हम जिनके शरीर के टुकड़े हैं,आज हम उनको ऐसे लोगों के हवाले कर आये, जो उनकी आदत, उनकी बीमारी,उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते,
जब मैं ऐसी माँ के लिए कुछ नहीं कर सकता तो मैं किसी और के लिए भला क्या कर सकता हूँ.
आज़ादी अगर इतनी प्यारी है और माँ इतनी बोझ लग रही हैं, तो मैं पूरी आज़ादी देना चाहता हूँ.
जब मैं बिना बाप के पल गया तो ये बच्चे भी पल जाएंगे. इसीलिए मैं तलाक देना चाहता हूँ,
सारी प्रॉपर्टी इन लोगों के हवाले करके उस ओल्ड ऐज होम में रहूँगा. कम से कम मैं माँ के साथ रह तो सकता हूँ.
और अगर इतना सबकुछ कर के माँ आश्रम में रहने के लिए मजबूर है, तो एक दिन मुझे भी आखिर जाना ही पड़ेगा. माँ के साथ रहते-रहते आदत भी हो जायेगी. माँ की तरह तकलीफ तो नहीं होगी.
जितना बोलते उससे भी ज्यादा रो रहे थे. बातें करते करते रात के 12:30 हो गए. मैंने भाभीजी के चेहरे को देखा.
उनके भाव भी प्रायश्चित्त और ग्लानि से भरे हुए थे. मैंने ड्राईवर से कहा अभी हम लोग ओल्ड होम जाएंगे.
भाभीजी और बच्चे हम सारे लोग वहां पहुँचे.
बहुत ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला. भाई साहब ने उस गेटकीपर के पैर पकड़ लिए, बोले मेरी माँ है, मैं उसको लेने आया हूँ,
चौकीदार ने कहा क्या करते हो साहब,
भाई साहब ने कहा मैं बड़ा आदमी हूँ,
उस चौकीदार ने कहा:-
"जहाँ सारे सबूत सामने हैं तब तो आप अपनी माँ के साथ बडा आदमियत नहीं कर पाये,
औरों के साथ क्या  करते होंगे साहब।
इतना कहकर हम लोगों को वहीं रोककर वह अन्दर चला गया.
अन्दर से एक महिला आई जो वार्डन थी.
उसने बड़े कातर शब्दों में कहा:-
"2 बजे रात को आप लोग ले जाके कहीं मार दें, तो मैं अपने ईश्वर को क्या जबाब दूंगी..?"
मैंने सिस्टर से कहा आप विश्वास करिये. ये लोग बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे हैं.
अंत में किसी तरह उनके कमरे में ले गईं. कमरे में जो दृश्य था, उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हूँ.
केवल एक फ़ोटो जिसमें पूरी फैमिली है और वो भी माँ जी के बगल में, जैसे किसी बच्चे को सुला रखा है.
मुझे देखीं तो उनको लगा कि बात न खुल जाए
लेकिन जब मैंने कहा हमलोग आप को लेने आये हैं, तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी.
आसपास के कमरों में और भी बुजुर्ग थे सब लोग जाग कर बाहर तक ही आ गए.
उनकी भी आँखें नम थीं.
कुछ समय के बाद चलने की तैयारी हुई. पूरे आश्रम के लोग बाहर तक आये. किसी तरह हम लोग आश्रम के लोगों को छोड़ पाये.
सब लोग इस आशा से देख रहे थे कि शायद उनको भी कोई लेने आए, रास्ते भर बच्चे और भाभी जी तो शान्त रहे .......
लेकिन भाई साहब और माताजी एक दूसरे की भावनाओं कोअपने पुराने रिश्ते पर बिठा रहे थे.घर आते-आते करीब 3:45 हो गया.
👩🏻 भाभीजी भी अपनी ख़ुशी की चाबी कहाँ है ये समझ गई थीं.
मैं भी चल दिया. लेकिन रास्ते भर वो सारी बातें और दृश्य घूमते रहे.
👵🏻 माँ केवल माँ है. 👵🏻
उसको मरने से पहले ना मारें.

माँ हमारी ताकत है उसे बेसहारा न होने दें , अगर वह कमज़ोर हो गई  तो हमारी संस्कृति की रीढ़ कमज़ोर हो जाएगी , बिना रीढ़ का समाज कैसा होता है किसी से छुपा नहीं

अगर आपकी परिचित परिवार में ऐसी कोई समस्या हो तो उसको ये जरूर पढ़ायें, बात को प्रभावी ढंग से समझायें , कुछ भी करें लेकिन हमारी जननी को बेसहारा बेघर न होने दें, अगर माँ की आँख से आँसू गिर गए तो ये क़र्ज़ कई जन्मों तक रहेगा , यकीन मानना सब होगा तुम्हारे पास पर सुकून नहीं होगा , सुकून सिर्फ माँ के आँचल में होता है उस आँचल को बिखरने मत देना।।

अम्बेडकर बनाम मनुवाद---सिद्धांत एवं ब्यवहार


अम्बेडकर हिन्दू समाज को जाति विहीन बनाना चाहते थे। नही बना पाये । उन्ही के समाज ने उनकी एक नही सुनी। बेचारे अपने एक मात्र मिशन में हार गये तो अपना मत ही बदल दिया। दलितों को उनके भाग्यपर छोड़कर बौद्ध हो गये। सभी दलित अम्बेडकर की जगह मनु की शरण में ही रहना उचित समझा। आज भी वे जय भीम तो बोलते हैं पर व्यवहार में वे मनु को ही अपनाते हैं। अम्बेडकर को तो उन्होने नारों मे, तस्बीरों में, बुतो में जकड़ रखा है पर मनु उनके जीन्स में समागये हैं। दलित आपस में ही जाति- पाँति मिटाकर एक होना नही चाहते हैं। चमार धोबी के साथ, मेहतर डोम के साथ, डोम दुसाध के साथ सम्बन्ध जोड़ने को तैयार है क्या? बैकवर्डों का भी यही हाल है। यादव बिन्द के साथ, गड़ेर कुरमी, कुम्हार, गोंड आदि के साथ या बैकवर्डों की कोई भी बिरादरी अन्तरजातीय विवाह करने को तैयार है क्या? मनु सहस्सों वर्षों से लोगों के संस्कार बन कर जीवित हैं और जीवित रहेंगे। ऐसे करोड़ों अम्बेडकर उन्हे नही मिटा पायेंगे और हिन्दूधर्म छोड़कर भागते रहेंगे। पर हाँ मनु कर्मणा वर्ण के पक्ष में थे। अस्पृश्यता के विरुद्ध थे। पूरे समाज को विराट पुरुष का शरीर मानते थे और समाज के सुचारुरूप से संचालन के लिये एकात्मता और समता में विषमता की व्यवस्था की थी। ब्राह्मण और शूद्र का निर्धारण का आधार जन्म नही कर्म था,- गुण कर्म विभागशः। एक उदाहरण पर्याप्त होगा,-
   शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्।
   क्षत्रियाज्जतमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च।।
                        मनु स्मृ.१०/६५.
अर्थात्,श्रेष्ठ अश्रेष्ठ कर्मानुसार शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है। यहीं नियम क्षत्रिय और वैश्यों पर भी लागू होता है। पर जिनके हाथ में शास्त्र और लेखनी थी उन्होने अपने पक्ष में बड़ी बेइमानियाँ की। अब इतने सुन्दर नियम के साथ एक श्लोक जोड़ दिया कि ब्राह्मण पतित होते होते सात जन्म में शूद्र होगा और शूद्र उठते उठते सात जन्म में ब्राह्मण होगा।  इस तरह समाज में नगण्य प्रतिशत रखने वाले लोगों की बेइमानियों ने गंगा की तरह पावन और लोक हितकारी मनुस्मृति को प्रदूषित करके रखदिया। इन्हीलोगों ने यदि भगवान् श्री राम के चरित में शम्बूकवध की कथा नही जोड़ी होती तो भगवान श्री राम दलितों के लिये सबसे बड़े मसीहा होते। ये ही समाज में नगण्य प्रतिशत वाले लोग आज भी सुधरने को तैयार नही हैं और हिन्दूसमाज की दुर्दशा के लिये एकमात्र जिम्मेवार हैं।

Sunday 3 April 2016

कुम्भ में साधुओं के रंग


सिंहस्थ 2016 के लिए साधु-संतों का जमावड़ा
मध्यप्रदेश के उज्जैन में होने लगा है। साधुओं के
अलग-अलग रूप लोगों को लुभा रहे हैं लेकिन एक
संत ऐसे भी हैं जो सबके आकर्षण का केंद्र बने
हुए हैं। गोल्डन बाबा के नाम से पहचाने जाने
वाले ये संत 11 किलो सोने के आभूषण पहनते हैं।
सिंहस्थ में पहली बार ये कैंप लगा रहे हैं।
करोड़ों का बिजनेस छोड़ा, बने संत
कभी दिल्ली में गारमेंट्स के बड़े व्यापारी रहे
गोल्डन बाबा का असली नाम सुधीर कुमार है।
गारमेंट्स के बिजनेस का सालाना टर्न ओवर
करोड़ों का था लेकिन इससे मन ऊब गया, फिर
2012 में इलाहबाद में दीक्षा लेकर सन्यासी हो
गए। सोना पहनने का शौक नया नहीं था,
1970 से सोने के गहने शरीर पर लदे रहते थे।
सन्यास के बाद भी सोने के गहने साथ ही रहे।
सन्यास से पहले लोग इन्हें गोल्डन बाबा के
नाम से पुकारते थे, सन्यास के बाद भी ये नाम
ही चुना अब उनका नाम गोल्डनपुरी बाबा है।
दो गार्ड रहते हैं हरदम साथ
गोल्डन बाबा के साथ सुरक्षा के लिए दो
बॉडीगार्ड हमेशा साथ रहते हैं। एक तिजोरी
साथ चलती है जहां बाबा जाते हैं। रात को
सोते समय गहने उतारे जाते हैं, सुबह नित्यकर्म
और पूजापाठ के बाद फिर पहनते हैं। बाबा जहां
भी जाते हैं गार्ड्स साये की तरह उनके साथ
रहते हैं। उज्जैन सिंहस्थ में जूना अखाड़े से
जुड़कर कैंप लगा रहे हैं जिसमें पूरे महीने भक्ति के
कार्यक्रम और भंडारा होगा।
गले में 21 लॉकेट और मालाएं
गोल्डन बाबा के गले में सोने के 21 लॉकेट और
मालाएं हैं, जो बरबस ही सबका ध्यान खिंचती
हैं। लक्ष्मी, दुर्गा, शिव, विष्णु से लेकर शरीर के
सप्त च्रकों के लॉकेट भी गले में है। दोनों हाथों
में बड़े-बड़े कड़े हैं जो पौराणिक काल के पात्रों
की याद दिलाते हैं।