Saturday 26 September 2015

क्रान्ति का डिजिटल भारत

ट्वीटर, फेसबुक और व्हाट्सअप अपने प्रचन्ड क्रांतिकारी दौर से गुजर रहा है...

हर नौसिखीया क्रांति करना चाहता है...

कोई बेडरूम में लेटे लेटे गौहत्या
करने वालों को सबक सिखाने कि बातें कर रहा है तो

किसीके इरादे सोफे पर बैठे बैठे महंगाई बेरोजगारी या बांग्लादेशियों को उखाड फेंकने के हो रहे हैं...

हफ्ते में एक दिन नहाने वाले लोग स्वच्छता अभियान की
खिलाफत और समर्थन कर रहे हैं ।

अपने बिस्तर से उठकर एक
गिलास पानी लेने पर नौबेल पुरस्कार कि उम्मीद रखने वाले
बता रहे हैं कि मां बाप की सेवा कैसे करनी चाहिये ।

जिन्होंने आज तक बचपन में कंचे तक नहीं जीते वह बता रहे हैं
कि भारत रत्न किसे मिलना चाहीये ।

जिन्हें गली क्रिकेट में इसी शर्त पर खिलाया जाता था कि बॉल
कोई भी मारे पर अगर नाली में गयी तो निकालना तुझे
ही पड़ेगा वो आज कोहली को समझाते पाये जायेंगे की उसे
कैसे खेलना है ।

देश में महिलाओं की
कम जनसंख्या को देखते हुये उन्होंने नकली ID's बना कर
जनसंख्या को बराबर कर दिया है ।

जिन्हें यह तक नहीं पता
कि हुमायूं बाबर का कौन था वह आज बता रहे हैं कि
किसने कितनों को काटा था ।

कुछ दिन भर शायरीयाँ पेलेंगे जैसे
'गालिब' के असली उस्ताद तो यहीं बैठे हैं !

जो नौजवान एक बालतोड़ हो जाने पर रो रो कर पूरे मोहल्ले में
हल्ला मचा देते हैं वह देश के लिये सर कटा लेने
की बात करते दिखेंगे ।

किसी भी पार्टी का समर्थक होने में समस्या यह है कि
भाजपा समर्थक को अंधभक्त,
"आप" समर्थक उल्लू
तथा काँग्रेस समर्थक बेरोजगार करार दे दिये जाते हैं

कॉपी पेस्ट करनेवालों के तो कहने ही क्या
किसी की भी पोस्ट चेंप कर एसे व्यवहार करेंगे जैसे
साहित्य की गंगा उसके घर से ही बहती है ।

लेकिन समाज के
असली जिम्मेदार नागरिक हैं टैगिये,
इन्हें ऐसा लगता है
कि जब तक यह गुड मॉर्निंग वाले पोस्ट पर टैग नहीं करेंगे तब
तक लोगों को पता ही नही चलेगा कि सुबह हो चुकी है ।

जिनकी वजह से शादियों में गुलाबजामुन वाले स्टॉल पर एक आदमी
खड़ा रखना जरूरी है वो आम बजट पर टिप्पणी करते हुए पाये जाते हैं...

कॉकरोच देखकर चिल्लाते हुये दस
किलोमीटर तक भागने वाले पी एम को धमका रहे होते हैं कि
"प्रधानमंत्री जी अब भी वक्त है सुधर जाओ"।

😄😄😄😄😄

क्या वक्त आ गया है वाकई । धन्य है व्हाट्सअप , फेसबुक और ट्वीटर युग के क्रांतिकारी साथी।

हम भी शायद इन्हीं में से एक बन रहे हैं।

मित्रता का अर्थ


      
एक फकीर बहुत दिनों तक बादशाह के साथ रहा बादशाह का बहुत प्रेम उस फकीर पर हो गया।

प्रेम भी इतना कि बादशाह रात को भी उसे अपने कमरे में सुलाता।

कोई भी काम होता, दोनों साथ-साथ ही करते।

एक दिन दोनों शिकार खेलने गए और रास्ता भटक गए।

भूखे-प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे।

पेड़ पर एक ही फल लगा था।

बादशाह ने घोड़े पर चढ़कर फल को अपने हाथ से तोड़ा।

बादशाह ने फल के छह टुकड़े किए और अपनी आदत के मुताबिक पहला टुकड़ा फकीर को दिया।

फकीर ने टुकड़ा खाया और बोला, 'बहुत स्वादिष्ट ऎसा फल कभी नहीं खाया।

एक टुकड़ा और दे दें।

दूसरा टुकड़ा भी फकीर को मिल गया।

फकीर ने एक टुकड़ा और बादशाह से मांग लिया।

इसी तरह फकीर ने पांच टुकड़े मांग कर खा लिए।

जब फकीर ने आखिरी टुकड़ा मांगा, तो बादशाह ने कहा, 'यह सीमा से बाहर है।

आखिर मैं भी तो भूखा हूं।

मेरा तुम पर प्रेम है, पर तुम मुझसे प्रेम नहीं करते।'.

और सम्राट ने फल का टुकड़ा मुंह में रख लिया।

मुंह में रखते ही राजा ने उसे थूक दिया, क्योंकि वह कड़वा था।

राजा बोला, 'तुम पागल तो नहीं, इतना कड़वा फल कैसे खा गए?'

उस फकीर का उत्तर था,

'जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाने को मिले, एक कड़वे फल की शिकायत कैसे करूं?

सब टुकड़े इसलिए लेता गया ताकि आपको पता न चले।

दोस्तों जँहा मित्रता हो वँहा संदेह न हो ।

Wednesday 23 September 2015

मनुष्य की गति

नदी में हाथी की लाश बही जा रही थी। एक कौए ने लाश देखी, तो प्रसन्न हो उठा, तुरंत उस पर आ बैठा। यथेष्ट मांस खाया। नदी का जल पिया। उस लाश पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली। वह सोचने लगा, अहा! यह तो अत्यंत सुंदर यान है, यहां भोजन और जल की भी कमी नहीं। फिर इसे छोड़कर अन्यत्र क्यों भटकता फिरूं?
कौआ नदी के साथ बहने वाली उस लाश के ऊपर कई दिनों तक रमता रहा। भूख लगने पर वह लाश को नोचकर खा लेता, प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेता। अगाध जलराशि, उसका तेज प्रवाह, किनारे पर दूर-दूर तक फैले प्रकृति के मनोहरी दृश्य-इन्हें देख-देखकर वह विभोर होता रहा।
नदी एक दिन आखिर महासागर में मिली। वह मुदित थी कि उसे अपना गंतव्य प्राप्त हुआ। सागर से मिलना ही उसका चरम लक्ष्य था, किंतु उस दिन लक्ष्यहीन कौए की तो बड़ी दुर्गति हो गई। चार दिन की मौज-मस्ती ने उसे ऐसी जगह ला पटका था, जहां उसके लिए न भोजन था, न पेयजल और न ही कोई आश्रय। सब ओर सीमाहीन अनंत खारी जल-राशि तरंगायित हो रही थी।
कौआ थका-हारा और भूखा-प्यासा कुछ दिन तक तो चारों दिशाओं में पंख फटकारता रहा, अपनी छिछली और टेढ़ी-मेढ़ी उड़ानों से झूठा रौब फैलाता रहा, किंतु महासागर का ओर-छोर उसे कहीं नजर नहीं आया। आखिरकार थककर, दुख से कातर होकर वह सागर की उन्हीं गगनचुंबी लहरों में गिर गया। एक विशाल मगरमच्छ उसे निगल गया।
शारीरिक सुख में लिप्त मनुष्यों की भी गति उसी कौए की तरह होती है, जो आहार और आश्रय को ही परम गति मानता है।

Thursday 17 September 2015

एक तथ्य यह भी

रामायण में सभी राक्षसों का वध हुआ था लेकिन💥
सूर्पनखा का वध नहीं हुआ था
उसकी नाक और कान काट कर छोड़ दिया गया था ।
वह कपडे से अपने चेहरे को छुपा कर
रहती थी ।
रावन के मर जाने के बाद वह
अपने पति के साथ शुक्राचार्य के पास
गयी और जंगल में उनके आश्रम में रहने लगी ।

राक्षसों का वंश ख़त्म न
हो
इसलिए, शुक्राचार्य ने शिव
जी की आराधना की ।
शिव जी ने
अपना स्वरुप शिवलिंग शुक्राचार्य को दे कर
कहा की जिस दिन कोई "वैष्णव" इस पर
गंगा जल चढ़ा देगा उस दिन
राक्षसों का नाश हो जायेगा ।
उस आत्म
लिंग को शुक्राचार्य ने वैष्णव मतलब
हिन्दुओं से दूर रेगिस्तान में स्थापित
किया जो आज अरब में "मक्का मदीना" में है ।
सूर्पनखा जो उस समय चेहरा ढक कर
रहती थी वो परंपरा को उसके बच्चो ने
पूरा निभाया आज भी मुस्लिम औरतें
चेहरा ढकी रहती हैं ।
सूर्पनखा के वंसज
आज मुसलमान कहलाते हैं ।
क्युकी शुक्राचार्य ने इनको जीवन दान
दिया इस लिए ये शुक्रवार को विशेष
महत्त्व देते हैं ।
पूरी जानकारी तथ्यों पर आधारित सच है।

शिक्षकों को समर्पित एक कविता

शिक्षक की गोद में उत्थान पलता है।
सारा जहां शिक्षक के पीछे ही चलता है।

शिक्षक का बोया हुआ पेड़ बनता है।
वही पेड़ हजारों बीज जनता है।

शिक्षक काल की गति को मोड़ सकता है।
शिक्षक धरा से अम्बर को जोड़ सकता है।

शिक्षक की महिमा महान होती है।
शिक्षक बिन अधूरी हूँ वसुन्धरा कहती है।

याद रखो चाणक्य ने इतिहास बना डाला था।
क्रूर मगध राजा को मिट्टी में मिला डाला था।

बालक चन्द्रगुप्त को चक्रवर्ती सम्राट बनाया था।
एक शिक्षक ने अपना लोहा मनवाया था।

संदीपनी से गुरु सदियों से होते आये है।
कृष्ण जैसे नन्हे नन्हे बीज बोते आये है।

शिक्षक से ही अर्जुन और युधिष्ठिर जैसे नाम है।
शिक्षक की निंदा करने से दुर्योधन बदनाम है।

शिक्षक की ही दया दृष्टि से बालक राम बन जाते है।
शिक्षक की अनदेखी से वो रावण भी कहलाते है।

हम सब ने भी शिक्षक बनने का सुअवसर पाया है।
बहुत बड़ी जिम्मेदारी को हमने गले लगाया है।

आओ हम संकल्प करे की अपना फ़र्ज निभायेगे।
अपने प्यारे भारत को हम जगतगुरु बनायेंगे।

अपने शिक्षक होने का हरपल अभिमान करेगे।
इस समाज में हम भी अपना शिक्षा दान करेगे।।

Friday 4 September 2015

भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी मे वृषभ राशि, रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार क्यों लिया, धर्म ग्रंथों के अनुसार इसका कारण इस प्रकार है-

द्वापर युग में जह पृथ्वी पर मानव रूपी राक्षसों के अत्याचार बढऩे लगे। तब पृथ्वी दु:खी होकर भगवान विष्णु के पास गईं। तब भगवान विष्णु ने कहा मैं शीघ्र ही पृथ्वी पर जन्म लेकर दुष्टों का सर्वनाश करूंगा। द्वापर युग के अन्त में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक कारागार में डाल स्वयं राजा बन गया थी।

कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ तय हुआ। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि- देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा । यह सुनकर कंस डर गया और उसने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया। और एक-एक कर देवकी की होने वाली संतानों का वध करने लगा।

आठवें गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ लेकिन माया के प्रभाव से किसी को इस बात का पता नहीं चला कि देवकी की आठवी संतान गोकुल में नंदबाबा के यहां पल रही है। यहां भी श्रीकृष्ण ने अपनी लीला से कई राक्षसों का वध किया और अंत में कंस का वध कर राजा उग्रसेन को सिंहासन पर बैठाया। श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में पाण्डवों का साथ दिया और अधर्म का नाश कर धर्म रूपी युधिष्ठिर को सिंहासन पर बैठाया।

इस बार ये त्योहार दिनांक 05-09-2015 को है। अगर इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय किए जाएं तो हर मनोकामना पूरी हो सकती है।

उपाय

1- धनवान :- भगवान श्रीकृष्ण को सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं। इसमें तुलसी के पत्ते अवश्य डालें।

2- मालामाल होना :- इस दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक करें।

3- सुख - शांति :- श्रीकृष्ण मंदिर में जाकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र की 11 माला जप करें। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण को पीला वस्त्र व तुलसी के पत्ते अर्पित करें. मंत्र - {"क्लीं कृष्णाय वासुदेवाय हरि: परमात्मने प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:"}

4- मां लक्ष्मी की कृपा :- श्रीकृष्ण को पीतांबरधारी भी कहते हैं, जिसका अर्थ है पीले रंग के कपड़े पहनने वाला। इस दिन पीले रंग के कपड़े, पीले फल व पीला अनाज दान करने से प्राप्त होती है।

5- तिजोरी में पैसा :- जन्माष्टमी की करीब 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करें तो जीवन में कभी धन की कमी नहीं आती।

6- जेब खाली नहीं होगी :- इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते समय कुछ रुपए इनके पास रख दें। पूजन के बाद ये रूपए अपने पर्स में रख लें।

7- घर के वातावरण के लिए :- जन्माष्टमी को शाम के समय तुलसी को गाय के घी का दीपक लगाएं और "ऊँ वासुदेवाय नम:" मंत्र बोलते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें।

8- आमदनी या नौकरी :- सात कन्याओं को खीर या सफेद मीठी वस्तु खिलानी चाहिए। फिर पांच शुक्रवार सात कन्याओं को खीर बांटें।

9- कार्य बनाने के लिए :- जन्माष्टमी से शुरू कर, सत्ताइस दिन नारियल, बादाम लगातार मंदिर में चढ़ाये।

10- कर्ज :- श्मशान के कुएं का जल लाकर किसी पीपल वृक्ष पर अर्पित करे। यह उपाय जन्माष्टमी से शुरू करे, फिर नियमित रूप से छह शनिवार यह उपाय करे।

11- अचानक धन लाभ :- शाम के समय पीपल के पास तेल का पंचमुखी दीपक जलाना चाहिए।

12- शत्रु :- शाम को पीपल के पत्ते पर अनार की कलम से गोरोचन द्वारा शत्रु का नाम लिखकर जमीन में दबा दें। शत्रु शांत होंगे, मित्रवत व्यवहार करेंगे व कभी भी हानि नहीं पहुंचाएंगे।

13- धन की कमी के लिए :- जन्माष्टमी की रात 12 बजे बाद यह प्रयोग करें। एकांत स्थान पर लाल वस्त्र पहन कर बैठें। सामने दस लक्ष्मीकारक कौडिय़ां रखकर एक बड़ा तेल का दीपक जला लें और प्रत्येक कौड़ी को सिंदूर से रंग लें तथा हकीक की माला से इस मंत्र की पांच माला जप करें। इन कौडिय़ों पर धन स्थान अर्थात जहां आप पैसे रखते हों वहां रखें।
मंत्र :- {"ऊँ ह्रीं श्रीं श्रियै फट्"}

14- सुंदर संतान :- जन्माष्टमी के दिन सुबह या शाम के समय कुश के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जप करें। सामने बालगोपाल की मूर्ति या चित्र अवश्य रखें और मन में बालगोपाल का स्मरण करें। कम से कम 5 माला जप अवश्य करें। मंत्र - {"देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणंगता।।"}

जन्माष्टमी के अवसर पर ईश्वर की कृपा आप पर होगी.. आपकी मनोकामना जरूर पूरी होगी….. जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.....

Wednesday 2 September 2015

परोपकार को समझिये

*परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥

परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं, (अर्थात्) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है ।

*आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः
परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥

इस जीवलोक में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता ? परंतु, जो परोपकार के लिए जीता है, वही सच्चा जीना है ।

*राहिणि नलिनीलक्ष्मी दिवसो निदधाति दिनकराप्रभवाम् ।अनपेक्षितगुणदोषः परोपकारः सतां व्यसनम् ॥

दिन में जिसे अनुराग है वैसे कमल को, दिन सूर्य से पैदा हुई शोभा देता है । अर्थात् परोपकार करना तो सज्जनों का व्यसन-आदत है, उन्हें गुण-दोष की परवा नहीं होती ।

*भवन्ति नम्रस्तरवः फलोद्रमैः
नवाम्बुभिर्दूरविलम्बिनो घनाः ।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् ॥

वृक्षों पर फल आने से वे झुकते हैं (नम्र बनते हैं); पानी में भरे बादल आकाश में नीचे आते हैं; अच्छे लोग समृद्धि से गर्विष्ठ नहीं बनते, परोपकारियों का यह स्वभाव ही होता है ।

*श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥

जो करोडो ग्रंथों में कहा है, वह मैं आधे श्लोक में कहता हूँ; परोपकार पुण्यकारक है, और दूसरे को पीडा देना पापकारक है ।

*जीवितान्मरणं श्रेष्ठ परोपकृतिवर्जितात् ।
मरणं जीवितं मन्ये यत्परोपकृतिक्षमम् ॥

बिना उपकार के जीवन से मृत्यु श्रेष्ठ है; जो परोपकार करने के लिए शक्तिमान है, उस मरण को भी मैं जीवन मानता हूँ ।

*परोपकारशून्यस्य धिक् मनुष्यस्य जीवितम् ।
जीवन्तु पशवो येषां चर्माप्युपकरिष्यति ॥

परोपकार रहित मानव के जीवन को धिक्कार है । वे पशु धन्य है, मरने के बाद जिनका चमडा भी उपयोग में आता है

उपवास का अर्थ जानिये

शरीर को स्वस्थ प्रसन्न रखने हेतु शास्त्रों में उपवासों का विधान बताया गया है। हम सबने उपवास किया होगा। आज हम जानेंगे कि उपवास होते कितने प्रकार के हैं-
1.प्रात: उपवास,
2.अद्धोपवास,
3.एकाहारोपवास,
4.रसोपवास,
5.फलोपवास,
6.दुग्धोपवास,
7.तक्रोपवास,
8.पूर्णोपवास,
9.साप्ताहिक उपवास,
10.लघु उपवास,
11.कठोर उपवास,
12.टूटे उपवास,
13.दीर्घ उपवास।

 
1.प्रात: उपवास- इस उपवास में सिर्फ सुबह का नाश्ता नहीं करना होता है और पूरे दिन और रात में सिर्फ 2 बार ही भोजन करना होता है।

2.अद्धोपवास- इस उपवास को शाम का उपवास भी कहा जाता है और इस उपवास में सिर्फ पूरे दिन में एक ही बार भोजन करना होता है। इस उपवास के दौरान रात का भोजन नहीं खाया जाता।

3.एकाहारोपवास- एकाहारोपवास में एक समय के भोजन में सिर्फ एक ही चीज खाई जाती है, जैसे सुबह के समय अगर रोटी खाई जाए तो शाम को सिर्फ सब्जी खाई जाती है। दूसरे दिन सुबह को एक तरह का कोई फल और शाम को सिर्फ दूध आदि।

4.रसोपवास- इस उपवास में अन्न तथा फल जैसे ज्यादा भारी पदार्थ नहीं खाए जाते, सिर्फ रसदार फलों के रस अथवा साग-सब्जियों के जूस पर ही रहा जाता है। दूध पीना भी मना होता है, क्योंकि दूध की गणना भी ठोस पदार्थों में की जा सकती है।

5.फलोपवास- कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों या भाजी आदि पर रहना फलोपवास कहलाता है। अगर फल बिलकुल ही अनुकूल न पड़ते हो तो सिर्फ पकी हुई साग-सब्जियां खानी चाहिए।

6.दुग्धोपवास- दुग्धोपवास को 'दुग्ध कल्प' के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास में सिर्फ कुछ दिनों तक दिन में 4-5 बार सिर्फ दूध ही पीना होता है।

7.तक्रोपवास- तक्रोपवास को 'मठाकल्प' भी कहा जाता है। इस उपवास में जो मठा लिया जाए, उसमें घी कम होना चाहिए और वो खट्टा भी कम ही होना चाहिए। इस उपवास को कम से कम 2 महीने तक आराम से किया जा सकता है।

 
8.पूर्णोपवास- बिलकुल साफ-सुथरे ताजे पानी के अलावा किसी और चीज को बिलकुल न खाना पूर्णोपवास कहलाता है। इस उपवास में उपवास से संबंधित बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है।

9.साप्ताहिक उपवास- पूरे सप्ताह में सिर्फ एक पूर्णोपवास नियम से करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है।

10.लघु उपवास- 3 से लेकर 7 दिनों तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।

11.कठोर उपवास- जिन लोगों को बहुत भयानक रोग होते हैं यह उपवास उनके लिए बहुत लाभकारी होता है। इस उपवास में पूर्णोपवास के सारे नियमों को सख्ती से निभाना पड़ता है।

 
12.टूटे उपवास- इस उपवास में 2 से 7 दिनों तक पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर रहकर दोबारा उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास रखने का और हल्का भोजन करने का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि इस उपवास को करने का मकसद पूरा न हो जाए।

 
13.दीर्घ उपवास- दीर्घ उपवास में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक करना होता है जिसके लिए कोई निश्चित समय पहले से ही निर्धारित नहीं होता। इसमें 21 से लेकर 50-60 दिन भी लग सकते हैं। अक्सर यह उपवास तभी तोड़ा जाता है, जब स्वाभाविक भूख लगने लगती है अथवा शरीर के सारे जहरीले पदार्थ पचने के बाद जब शरीर के जरूरी अवयवों के पचने की नौबत आ जाने की संभावना हो जाती है।

धर्म का अर्थ

धर्म को जानने के लिए हमें धर्म का अर्थ जानना पड़ेगा |

मनु कहते है मनु स्मृति में

आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च समानमेतत्पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥

अर्थ – अगर किसी मनुष्य में धार्मिक लक्षण नहीं है और उसकी गतिविधी केवल आहार ग्रहण करने, निंद्रा में,भविष्य के भय में अथवा संतान उत्पत्ति में लिप्त है, वह पशु के समान है क्योकि धर्म ही मनुष्य और पशु में भेद करता हैं|

दस लक्षण जो कि धार्मिक मनुष्यों में मिलते हैं

मनु स्मृति में मनु आगे कहते है कि निम्नलिखित गुण धार्मिक मनुष्यों में मिलते हैं|

धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्रहः । धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो, दसकं धर्म लक्षणम ॥

धृति = 👏प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धैर्य न छोड़ना , अपने धर्म के निर्वाह के लिए
क्षमा = 👏बिना बदले की भावना लिए किसी को भी क्षमा करने की
दमो =  👏मन को नियंत्रित करके मन का स्वामी बनना
अस्तेयं = 👏किसी और के द्वारा स्वामित्व वाली वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग नहीं करना, यह चोरी का बहुत व्यापक अर्थ है , यहाँ अगर कोई व्यक्ति किसी और व्यक्ति की वस्तुओ या सेवाओ का उपभोग करने की सोचता भी है तो वह धर्म विरूद्ध आचरण कर रहा हैं
शौचं = 👏विचार, शब्द और कार्य में पवित्रता
इन्द्रियनिग्रहः= 👏इंद्रियों को नियंत्रित कर के स्वतंत्र होना
धी = 👏विवेक जो कि मनुष्य को सही और गलत में अंतर बताता हैं
र्विद्या = 👏भौतिक और अध्यात्मिक
ज्ञानसत्यं = 👏जीवन के हर क्षेत्र में सत्य का पालन करना, यहाँ मनु यह भी कहते है कि सत्य को प्रमाणित करके ही उसे सत्य माना जाय
अक्रोधो = 👏क्रोध का अभाव क्योंकि क्रोध ही आगे हिंसा का कारण होता हैं

यह दस गुण सभी मनुष्यों में मिलते है अन्यथा वह पशु समान है|

108 का महत्व

ध्यात्मिक नाम के पहले इसलिए लगाते हैं 'श्री श्री 108'

हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य व अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पहले श्री श्री 108 लगाया जाता है। क्या आप जानना चाहेंगे कि 108 अंक का क्या महत्व है ?

वेदान्त में एक मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 का उल्लेख मिलता है जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों ने किया था ।

प्रकृति में 108 का महत्व़

सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास 150,000,000 किमी/1,391,000 किमी = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं।

सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास 1,391,000 किमी/12,742 किमी = 108 यानी सूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं।

पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास 384403 किमी/3474.20किमी यानी हमारी पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच 108 चन्द्रमा और आ सकते हैं।

सभी 9 ग्रह जो कि अब 8 हैं। भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं। सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं और प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं।

कह सकते हैं कि ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है।जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव (अ + उ + म्) है और नादीय अभिव्यंजना ऊँ की ध्वनि है ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की 'गणितीय अभिव्यंजना 108' है।

Tuesday 1 September 2015

यह भी एक विचार

बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया। हुँमायुं को ठोक पीटकर भगा दिया। मुग़ल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली और जहाँगीर,शाहजहाँ से होते हुए अवरंगजेब आते आते उखड़ गया। कुल 100 वर्ष(अकबर 1556ई से ओरंगजेब1658ई तक) के समय के स्थिर शासन को मुग़ल काल नाम से #इतिहास में एक पूरे पार्ट की तरह पढ़ाया जाता है....मानो सृष्टि आरम्भ से आजतक के कालखण्ड में तीन भाग कर बीच के मध्यकाल तक इन्हीं का राज रहा....! अब इस स्थिर(?) शासन की तीन चार पीढ़ी के लिए कई किताबें, पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न, विज्ञापनों में गीत, ....इतना हल्ला मचा रखा है, मानो पूरा मध्ययुग इन्हीं 100वर्षों के इर्द गिर्द ही है। जबकि उक्त समय में मेवाड़ इनके पास नहीँ था।दक्षिण और पूर्व भी एक सपना ही था। अब जरा विचार करें.....क्या भारत में अन्य तीन चार पीढ़ी और शताधिक वर्ष पर्यन्त राज्य करने वाले वंशों को इतना महत्त्व या स्थान मिला है? हर्यक वंश, मौर्य साम्राज्य, गुप्त काल, इनके वंशजों ने कई कई पीढ़ियों तक शानदार शासन चलाए। अकेला विजयनगर साम्राज्य ही 300 वर्ष तक टिका रहा। हीरे माणिक्य की #हम्पी नगर में मण्डियां लगती थी। पर उनका वर्णन करते समय इतिहासकारों को मुँह का कैंसर हो जाता है। जी के की किताबों में पन्ने कम पड़ जाते है।पाठ्यक्रम के पृष्ठ सिकुड़ जाते है।कोचिंग वालों की नानी मर जाती है। प्रतियोगी परीक्षकों के हृदय पर हल चल जाते है। वामपंथी इतिहासकारों ने नेहरुवाद का मल भक्षण कर, जो उल्टियाँ की.उसे ज्ञान समझ चाटने वाले चाटुकारों...! तुम्हें धिक्कार है!!!