हम जानते हैं , फेस बुक पर बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो काशिविश्विद्यालय से बावस्ता रहे हैं और ट्रिपल सिंह के बारे उनके पास भी कथाएं हैं , उनसे निवेदन है की वे खुल कर लिखे । हम बीच बीच में कुछ न कुछ लिखते रहेंगे । एक वाकया सुन लीजिये ।
नेता जी राज नारायण लंका पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने वाले थे । कुलपति ने ट्रिपल सिंह को मना लिया की तुम भी अपना भाषण वहीं करना । राज नारायण जी आनेवाले थे , उधर ट्रिपल सिंह सड़क की पटरी पर दो ईंट रख कर उस पर खड़े हो गए और जेब से एक माला निकाले और खुद पहन लिये । और लगे भाषण करने । इतने में नेता जी आ गए । उन्होंने पूछा इ कौन है । बताया गया की यही ट्रिपल सिंह हैं । नेता जी कहा इसे चुप कराओ । इस तरह के कामों के उस्ताद थे ,भाई दीन दयाल सिंह । गए ट्रिपल सिंह के पास और रास्ते से एक ईंट और लेते गए , ट्रिपल सिंह को दीन दयाल ने अपनी ईंट दिखाए , ट्रिपल सिंह समझे मंच और ऊंचा करने आये हैं दींन दयाल , सो वे दो ईंट के मंच से नीचे उतर गए । दीं दयाल ने तीनो ईंट उठा लिए ,ट्रिपल सिंह पैदल हो गए
आगे आगे दीन दयाल पीछे पीछे ट्रिपल सिंह । इस तरह ट्रिपल सिंह नेता जी राज नारायण के पास पहुंचे । फिर क्या नेता जी ने ट्रिपल सिंह का हाथ पकड़ लिया और अपने साथ मंच तक ले गए । मंच पर नेता जी बोले और ट्रिपल सिंह श्रोता रहे ।
खूबी नोट किया जाय - ट्रिपल सिंह कभी सपाट जमीन पर खड़े होकर भाषण नहीं किये , न कभी बगैर माला के , चाहे एक ही फूल क्यों न हो वो उसे कान पर रख लेते थे ।
खूबी नंबर दो - सरकार के बारे में ,उनकी राय साफ़ थी - सरकार चुतिया होती है । सबूत अपना देते थे । जिस रात डकैतों ने उनके घर पर हमला बोला था , उसके पहले ट्रिपल सिंह ने कभी बन्दूक छुआ तक नहीं था लक्ष्यभेद की तो बात ही अलग है ,लेकिन उन्हें इतना पता था की जब बन्दुक में कारतूस भरा हो तो टेढ़ी उंगली की तरह जो किल्ली नीचे है और जिसे घोड़ा कहा जाता है उसे उंगली से अपनी तरह खींचो तो बन्दुक दग जाती है । उस रात ट्रिपल सिंह ने यही किया था ,यह बात दीगर थी की सामने डाकुओं का सरदार ही आ गया और उसकी खोपडी ही उड़ गयी । बगैर किसी जिरह , बगैर किसी जांच के सरकार अगर हमे बहादुर मान कर इनाम दे रही है , रिवाल्वर दे रही है , तो हम इस सरकार को क्या कहूँगा , चुतिया ही कहूँगा न ? इस लिए रिवाल्वर की खोल ट्रिपल सिंह की कमर में लटकती रहती थी और असल हलबा देबू दा की अलमारी में रहता था । क्यों कि ट्रिपल सिंह ठाकुर भले ही थे , लंठ भी थे ,लेकिन एक मक्खी भी नहीं मारे थे अपने जीते जी ।
दोस्त !यह उस जमाने की बात है जब आपको डूबने उतराने के लिए न गूगल था , न टीवी के दो सौ चैनल समाज इतना उघार भी नहीं हुआ था । कल जब हमने ट्रिपल सिंह को फेस बुक पर डाला तो हमारे उन मित्रों ने सबसे ज्यादा हंगामा किया जो उस जमाने में यहां थे आज विदेश में है और अपने बच्चों को बता रहे हैं की हियर इज इंडिया ।
This blog deals with social,political,cultural,and international issues.It is a window to my personal perspective.
Wednesday 3 February 2016
एक थे ट्रिपल सिंह काशी में
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