*परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥
परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं, (अर्थात्) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है ।
*आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः
परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥
इस जीवलोक में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता ? परंतु, जो परोपकार के लिए जीता है, वही सच्चा जीना है ।
*राहिणि नलिनीलक्ष्मी दिवसो निदधाति दिनकराप्रभवाम् ।अनपेक्षितगुणदोषः परोपकारः सतां व्यसनम् ॥
दिन में जिसे अनुराग है वैसे कमल को, दिन सूर्य से पैदा हुई शोभा देता है । अर्थात् परोपकार करना तो सज्जनों का व्यसन-आदत है, उन्हें गुण-दोष की परवा नहीं होती ।
*भवन्ति नम्रस्तरवः फलोद्रमैः
नवाम्बुभिर्दूरविलम्बिनो घनाः ।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् ॥
वृक्षों पर फल आने से वे झुकते हैं (नम्र बनते हैं); पानी में भरे बादल आकाश में नीचे आते हैं; अच्छे लोग समृद्धि से गर्विष्ठ नहीं बनते, परोपकारियों का यह स्वभाव ही होता है ।
*श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
जो करोडो ग्रंथों में कहा है, वह मैं आधे श्लोक में कहता हूँ; परोपकार पुण्यकारक है, और दूसरे को पीडा देना पापकारक है ।
*जीवितान्मरणं श्रेष्ठ परोपकृतिवर्जितात् ।
मरणं जीवितं मन्ये यत्परोपकृतिक्षमम् ॥
बिना उपकार के जीवन से मृत्यु श्रेष्ठ है; जो परोपकार करने के लिए शक्तिमान है, उस मरण को भी मैं जीवन मानता हूँ ।
*परोपकारशून्यस्य धिक् मनुष्यस्य जीवितम् ।
जीवन्तु पशवो येषां चर्माप्युपकरिष्यति ॥
परोपकार रहित मानव के जीवन को धिक्कार है । वे पशु धन्य है, मरने के बाद जिनका चमडा भी उपयोग में आता है
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