Wednesday, 2 September 2015

धर्म का अर्थ

धर्म को जानने के लिए हमें धर्म का अर्थ जानना पड़ेगा |

मनु कहते है मनु स्मृति में

आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च समानमेतत्पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥

अर्थ – अगर किसी मनुष्य में धार्मिक लक्षण नहीं है और उसकी गतिविधी केवल आहार ग्रहण करने, निंद्रा में,भविष्य के भय में अथवा संतान उत्पत्ति में लिप्त है, वह पशु के समान है क्योकि धर्म ही मनुष्य और पशु में भेद करता हैं|

दस लक्षण जो कि धार्मिक मनुष्यों में मिलते हैं

मनु स्मृति में मनु आगे कहते है कि निम्नलिखित गुण धार्मिक मनुष्यों में मिलते हैं|

धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्रहः । धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो, दसकं धर्म लक्षणम ॥

धृति = 👏प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धैर्य न छोड़ना , अपने धर्म के निर्वाह के लिए
क्षमा = 👏बिना बदले की भावना लिए किसी को भी क्षमा करने की
दमो =  👏मन को नियंत्रित करके मन का स्वामी बनना
अस्तेयं = 👏किसी और के द्वारा स्वामित्व वाली वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग नहीं करना, यह चोरी का बहुत व्यापक अर्थ है , यहाँ अगर कोई व्यक्ति किसी और व्यक्ति की वस्तुओ या सेवाओ का उपभोग करने की सोचता भी है तो वह धर्म विरूद्ध आचरण कर रहा हैं
शौचं = 👏विचार, शब्द और कार्य में पवित्रता
इन्द्रियनिग्रहः= 👏इंद्रियों को नियंत्रित कर के स्वतंत्र होना
धी = 👏विवेक जो कि मनुष्य को सही और गलत में अंतर बताता हैं
र्विद्या = 👏भौतिक और अध्यात्मिक
ज्ञानसत्यं = 👏जीवन के हर क्षेत्र में सत्य का पालन करना, यहाँ मनु यह भी कहते है कि सत्य को प्रमाणित करके ही उसे सत्य माना जाय
अक्रोधो = 👏क्रोध का अभाव क्योंकि क्रोध ही आगे हिंसा का कारण होता हैं

यह दस गुण सभी मनुष्यों में मिलते है अन्यथा वह पशु समान है|

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