'संघ मुक्त भारत' संभव नहीं नीतीश बाबू
शरद यादव और दूसरे नेताओं को दरकिनार करते हुए जदयू के अध्यक्ष बने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबू आजकल बड़ा सपना देख रहे हैं। उनकी नजर 2019 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। हालांकि नीतीश कुमार कहते हैं कि प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा, यह जनता तय करेगी। यह 'मन-मन भावे, मुडी हिलावे' वाली स्थिति है। यानी कोई व्यक्ति संकोचवश किसी पद/वस्तु के लिए कह तो नहीं पाता, लेकिन मन ही मन उसे पाना चाहता है और उसी उधेड़बुन में लगा रहता है। नीतीश कुमार भी यथासंभव अपने अनुकूल वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें मालूम है कि तीसरे मोर्चे का गठन करने का प्रयास उनसे पहले भी कई दिग्गज कर चुके हैं, लेकिन निज स्वार्थों के कारण उनके प्रयास सफल नहीं हो पाए। इसलिए नीतीश कुमार साल 2019 आते-आते अलग तरह की रणनीति अपनाकर भाजपा विरोधी दलों का नेतृत्व करना चाहते हैं। वह जानते हैं कि भाजपा की ताकत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी वैचारिक पृष्ठभूमि है। वह यह भी जानते हैं कि भाजपा विरोधी पार्टियां भाजपा से कहीं अधिक संघ से भय खाती हैं। खासकर वामपंथी दल और कांग्रेस अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भाजपा से कहीं अधिक संघ को घेरने का प्रयास करते हैं। नीतीश कुमार को यह अहसास हो रहा है कि भाजपा विरोधी दलों को संघ का हौव्वा दिखाकर अपने पाले में लाया जा सकता है। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक नारे 'कांग्रेस मुक्त भारत' से प्रेरित होकर नीतीश कुमार ने 'संघ मुक्त भारत' का नारा दिया है।
पटना में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा है कि 'संघ मुक्त भारत' बनाने के लिए सभी गैर भाजपा दलों को एक होना होगा। भाजपा और संघ की बाँटने वाली विचारधारा के खिलाफ एकजुटता ही लोकतंत्र को बचाने का एकमात्र रास्ता है। यह नारा देकर नीतीश बाबू ने राष्ट्रवाद की धमक से पीडि़त राजनीतिक दलों और विचारधाराओं की सहानुभूति अवश्य बटोर ली होगी। लेकिन, क्या नीतीश कुमार बता सकते हैं कि संघ मुक्त भारत कैसे संभव है? वर्ष 1925 में बोये गए एक बीज ने आज 90 साल बाद वटवृक्ष बनकर सम्पूर्ण भारत में अपनी जड़ें गहरी कर ली हैं। ऐसे वटवृक्ष को नीतीश कुमार कैसे उखाड़ पाएंगे? सबसे बड़ा सवाल नीतीश बाबू किस आधार पर भारत को संघ मुक्त बनाने का आह्वान करेंगे? इस संबंध में नीतीश कुमार का अन्य संघ विरोधियों की तरह चलताऊ तर्क है, जिसमें कोई दम नहीं। उनका कहना है कि संघ की विचारधारा बाँटने वाली है। यह बात तो कांग्रेस अपने स्वर्णकाल से कहती आ रही है, लेकिन उसकी देश ने नहीं सुनी। वामपंथी दल और वामपंथी विचारकों ने संघ को बदनाम करने के तमाम षड्यंत्र रच लिए, संघ के विरुद्ध पोथियां रच डालीं, लेकिन क्या हुआ? वामपंथियों को खुद का अस्तित्व बचाने के ही लाले पड़ रहे हैं। नीतीश कुमार यह कैसे भूल गए कि अनेक षड्यंत्रों और प्रतिकूल स्थितियों में भी संघ का विचार फला-फूला है। यानी संघ के विचारदर्शन में इस देश ने भरोसा जताया है।
संघ की विचारधारा बाँटने की नहीं है। संघ समाज को बाँटता नहीं, जोड़ता है। उदाहरण के लिए ताजा प्रकरण जेएनयू है। जेएनयू में 'देश को तोडऩे' और 'देश को बाँटने' के नारे लग रहे थे, तब संघ ही उन नारों के खिलाफ खड़ा हुआ था। जबकि नीतीश कुमार 'जेएनयू की देशद्रोही घटना' के पीछे खड़ी ताकतों से हाथ मिलाना चाहते हैं ताकि वर्ष 2019 में भाजपा और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ खड़े होने की हैसियत हासिल कर सकें। संघ ही वह संगठन है, जिसने सामाजिक समरसता लाने के लिए 'एक कुंआ, एक मंदिर और एक श्मशान' की स्थिति बनाने का संकल्प लिया है। सामाजिक समरसता के कार्यों के लिए महात्मा गाँधी भी आरएसएस की प्रशंसा कर चुके हैं। वर्ष 1977 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी संघ के कार्यों को देखते हुए कहा था कि संघ ही एकमात्र संगठन है जो समाज में व्याप्त जातिवाद को खत्म कर सकता है। गरीबों की आँख से आँसू पोंछ सकता है। सामाजिक परिवर्तन का नेतृत्व करने की क्षमता सिर्फ संघ में है। जो लोग संघ को मुस्लिम विरोधी ठहराने की कोशिश करते हैं उन्हें संघ के विषय में गहरा अध्ययन नहीं है। संघ की शाखा हमेशा से मुसलमानों के लिए खुली रही है। लेकिन, संकोचवश मुस्लिम समाज ने ही शाखा से दूरी बनाकर रखी थी। अब संघ के नेतृत्व में राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच मुसलमानों के बीच काम कर रहा है। देश के तीसरे राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने भी कहा था कि आरएसएस पर लगाए जाने वाले सांप्रदायिकता और मुसलमानों के विरुद्ध नफरत फैलाने के आरोप मिथ्या हैं। देश को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसा लोकप्रिय राष्ट्रपति देने के पीछे संघ का ही निर्णय था। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का संघ प्रेम किसी से छिपा है क्या? क्या नीतीश कुमार इन सब विभूतियों के विचारों से अनजान हैं?
आज संघ न केवल भारत में विस्तार पा रहा है, बल्कि दुनिया के अनेक देशों में भी अपनी विचारधारा को स्थापित करने में सफल हो गया है। क्या बाँटने वाली विचारधारा को इतनी स्वीकार्यता मिल पाती है? संघ के संबंध में नीतीश कुमार की वास्तविक समझ क्या है, यह तो वह ही बेहतर जानते होंगे। नीतीश कुमार की गिनती देश के पढऩे-लिखने वाले नेताओं में होती है। फिर वह कैसे भूल गए कि देश को जब भी बाँटने का षड्यंत्र रचा गया, तब आरएसएस ने मुखर विरोध किया है। 1947 में भारत-पाकिस्तान बँटवारे का वाकया हो या फिर आज जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिश। प्रत्येक क्षण में संघ भारत के साथ खड़ा दिखा है। संघ के विरुद्ध गलतबयानी करके नीतीश बाबू जिनको रिझाने की कोशिश कर रहे हैं, उनमें से एक विचारधारा (वामपंथ) 1962 में चीन से युद्ध के समय दुश्मन देश के साथ खड़ी थी। गोवा मुक्ति संग्राम के संघर्ष की गाथा के पन्ने भी नीतीश कुमार को पलटने चाहिए। पुर्तगालियों से गोवा को मुक्त कराकर वहाँ तिरंगा झंडा फहराने के लिए संघ के कार्यकर्ताओं ने अपना खून बहाया है। देश की संप्रभुता के लिए आरएसएस के स्वयंसेवकों ने अपनी शहादत दी है। आरएसएस पर समाज को बाँटने वाली विचारधारा का पोषक होने का आरोप स्पष्टत: तथ्यहीन और बेबुनियाद है। हताश और निराश विचारधाराएं/ विचारक/ राजनेता वर्षों से संघ पर अनर्गल आरोप लगाते रहे हैं। उनकी जमात में अब नीतीश कुमार भी शामिल हो गए हैं। लेकिन, संघ अपनी गति से समाज का भरोसा जीतते हुए आगे बढ़ रहा है।
एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि संघ मुक्त भारत बनाने के लिए नीतीश बाबू ने राजनीति दलों से एकजुट होने का आह्वान किया है। कांग्रेस, वामदल और अन्य क्षेत्रीय दलों की एकजुटता से एकबारगी भाजपा को चुनौती दी जा सकती है, संघ को नहीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रत्यक्ष राजनीति में शामिल नहीं है, तब राजनीतिक दल उसे किस प्रकार चुनौती देंगे। संघ पर प्रतिबंध लगाने का परिणाम कांग्रेस आज भुगत रही है। संघ से निपटने के लिए उसके धरातल पर संघर्ष करने का सामथ्र्य यह दल कैसे जुटाएंगे? और संघ को कहाँ-कहाँ से किस प्रकार खत्म करने की योजना नीतीश बाबू के पास है? संघ तो अनेक शाखाओं में विस्तारित होकर समाज के प्रत्येक हिस्से में पूर्ण समर्पण के साथ काम कर रहा है। वनवासी कल्याण आश्रम के माध्यम से वनवासी क्षेत्रों में संघ का बहुत बड़ा काम खड़ा है। विवेकानंद केन्द्र के जरिए युवाओं में गहरी पकड़ है। वंचित समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए सेवाभारती के जरिए कार्यरत है। शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती से बड़ा प्रकल्प किस संगठन का है? महिलाओं के बीच राष्ट्र सेविका समिति का मजबूत काम खड़ा हो चुका है। आरोग्य भारती, संस्कार भारती, क्रीड़ा भारती, सक्षम (दिव्यांगों के बीच काम करने वाला संगठन), अधिवक्ता परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ, ग्राहक पंचायत, विज्ञान भारती और भारतीय शिक्षण मंडल जैसे अनेक अनुषांगिक संगठन समाज के प्रत्येक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। संघ भारत की नस-नस में समा गया है। भारत को संघ से मुक्त कैसे किया जा सकता है? जदयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की खातिर इतने व्यापक संगठन से भारत को मुक्त कर पाएंगे, यह असंभव-सा प्रतीत होता है। नीतीश कुमार को यह बात भी समझनी चाहिए कि संघ ने 90 साल में भरोसा कमाया है। कांग्रेस, वामपंथी दलों और क्षेत्रीय दलों की स्वार्थ की राजनीति के गठजोड़ से संघ का चोट नहीं पहुँचाई जा सकती है। सत्ता की चकाचौंध में निश्चित ही नीतीश कुमार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का देशप्रेम, समाज के प्रति उसकी संवेदना और तपस्या दिखाई नहीं दे रही होगी।
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