बिहार में चुनाव हुआ।भाजपा गठबन्धन पराजित हुआ।सुशासन बाबू के नेतृत्व में महागठबन्धन की जीत हुई।लालू का परिवार फिर से स्थापित हुआ।दोनों बेटों को राजनीतिक रोजगार मिला।एक उपमुख्यमंत्री दूसरा मंत्री।पत्नी और बेटी राज्यसभा के दरवाजे पर खड़े हुये।जनता तमासबीन बनी राजनीतिक नाटक का।5 साल तक जनता अपनी गलती का पश्चाताप करती रहेगी।चुनाव में एक मुद्दा था।क्या जंगल राज की फिर वापसी होगी?आशंका थी।सुशासन बाबू ने मंगल राज का वादा किया।चुनाव में लालू के साथ अपराधी गैंग भी प्रचार में था।उसने जन-धन का प्रयोग किया।सरकार उनके समर्थन से बनी।वे चाहेंगे ही कि उन्हें पारिश्रमिक मिले।उन्हे धन्धा चाहिये।फिरौती चाहिये।जो धन नहीं देगा उसे मरना पडेगा।वर्षों से खामोश पड़े पिस्तौल के जंग को हटाने के लिये गोली चलाती पडेगी।हत्या करना ही पडेगा।हत्या होगी तो पुलिस अपराधी गठबन्धन को लाभ होगा।सरकार की अवकात नहीं होगी कि वह कुछ कर सके।सहयोग उनसे लिया है।चुनाव में जितना पैसा अपराधियों ने खर्च किया है सूद समेत वापस लेंगे।तभी सरकार बयान देती है कि हम लाठी चलाने नही जायेंगे।जनता को मरना हो मरे।5 साल बाद जनता से जब काम पड़ेगा तब देखेंगे।बेचारे सूशासन बाबू लालू के आगे पस्त हैं।इंजिनियर काम छोड़ भाग रहे।विहार का विकास ठप्प होगा।दारू भी अपराधी गिरोह ही बेचता है।वह भी बन्द होगा।तब फिरौती ही धन्धा बचेगा।इस धन्धे में सरकार भी शामिल होगी।सुराग उठाते रहेंगे।धन्धा चलता रहेगा।पटरी पर लौटा बिहार अब फिर अंधेरी सुरंग में फंसता दीख रहा।
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