साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का यह जो खेल चल रहा है, आप लोग इसे हल्के मे न ले। मोदी सरकार पर किए गए इस वार मे पर्दे के पीछे कांग्रेस पार्टी-अंतरराष्ट्रीय एनजीओ-मीडया का बडा नेक्सस काम कर रहा है। जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार- मोदी सरकार ने खुफिया विभाग से इसकी जांच कराई है और प्रारंभिक जांच मे यह पता चला है कि है, देश मे चल रहे इस कोलाहल मे अमेरिका- सउदीअरब- पाकिस्तान तक शामिल है। बकायदा इसके लिए एक अंतरराष्ट्रीय पीआर एजेंसी को हायर किया गया है। पुरस्कार लौटाने का खेल तब शुरू हुआ जब कांग्रेस के कुछ बडे नेता, जेएनयू के कुछ प्रोफेसर और कुछ अंग्रेजी पत्रकार साहित्य अकादमी के पुरस्कार लौटाऊ साहित्यकारो से मिले और उन्हे इसके लिए राजी करने का प्रयास किया और अखलाक मामले को मुददा बनाकर पुरस्कार लौटाने को कहा। पहले इसके विरोध मे होने वाली प्रतिक्रिया के भय से कई साहित्यकार तैयार नही थे, जिसके बाद नेहरू की भतीजी नयनतारा सहगल को आगे किया गया। इसके बाद वो साहित्यकार तैयार हुए, जिनके एनजीओ को विदेशी संस्थाओ से दान मिल रहा था, जो मोदी सरकार द्वारा जांच के दायरे मे है और जिनकी बाहर से होने वाली फंडिंग पूरी तरह से रोक दी गयी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 150 से अधिक साहित्यकारो व पत्रकारो को इस पर लेख लिख कर, भारत को असहिष्णु देश साबित करने के लिए, अमेरिका- सउदी अरब- पाकिस्तान के पक्ष मे एक बडी अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एजेंसी ने एक अंतरराष्ट्रीय पी आर एजेंसी को हायर किया है, जिस पर करोडो रुपए खर्च किए गए है। संयुक्त राष्ट्र संघ मे भारत की दावेदारी को रोकने लिए अमेरिकी, सउदी अरब व पाकिस्तान मिलकर काम कर रहे है। इसके लिए भारत को मानवाधिकार पर घेरने और उसे असहिष्णु देश साबित करने की रूपरेखा तैयार की गई है। इसके लिए पहले अमेरिका ने अपनी धार्मिक रिपोर्ट जारी कर भारत को एक असहिष्णु देश के रूप में प्रोजेक्ट किया और उसमे गिन-गिन कर भाजपा के नेताओ व उनके वक्तव्यो को शामिल किया गया। इस समय सउदी अरब का राजपरिवार संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष है और पाकिस्तान के हित मे वह शीघ्र ही भारत को मानवाधिकार उल्लंघन के कटघरे मे खडा करने वाला है। यह रिपोर्ट भी मोदी सरकार के पास है। जांच मे यह भी पता चला है कि, उस अंतरराष्ट्रीय पीआर एजेंसी ने बडे पैमाने पर भारत के पत्रकारो, मीडिया हाउसो व साहित्यकारो को फंडिंग की है और इस पूरे मामले को बिहार चुनाव के आखिर तक जिंदा रखने को कहा गया है। गोटी यह है कि, यदि भाजपा बिहार मे हार गयी तो उसके बाद उसे बडे पैमाने पर अल्पसंख्यको के अधिकारो का उल्लंघन करने वाली सरकार के रूप मे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा। संभवत: इससे मोदी सरकार हमेशा के लिए बैकफुट पर आ जाएगी, जिसके बाद गो-वध निषेध जैसे हिंदूत्व के सारे मुददो को ताक पर रख दिया जाएगा। अमेरिका खुद डरा हुआ है कि वहां क्रिश्चनिटी खतरे मे है और बड़ी संख्या मे लोगो का रुझान हिन्दू धर्म की ओर बढ रहा है। यदि भाजपा बिहार में जीत गयी तो राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय साजिशकर्ता मिलकर देश मे बडे पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा को अंजाम दे सकते है, और मोदी सरकार को पांच साल तक सांप्रदायिकता मे ही उलझाए रख सकते है। मोदी सरकार पूरी तरह से चौकन्नी है और वह स्थिति का आकलन कर रही है।
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