Thursday, 5 November 2015

असहिष्णुता की काल्पनिकता


जिस साहित्यकार काशीनाथ सिंह ने कहा था कि अगर मोदी बनारस से चुनाव जीतते हैं तो ये बनारस की हार होगी।आज उनको लग रहा है की देश में असहिष्णुता बढ़ी है। जिस साहित्यकार भुल्लर ने बनारस में मोदी के ख़िलाफ़ प्रचार किया था उन्हें लग रहा है देश में असहिष्णुता बढ़ रही है। जो फिल्मकार हिन्दू आस्थाओं का मज़ाक उड़ाती फ़िल्में बनाकर पैसे कमाते थे उन्हें लग रहा है की देश में असहिष्णुता बढ़ रही। जो लोग कांग्रेसभक्ति की वजह से राष्ट्रपति जैसे पदों पर पहुँच गए उन्हें लगता है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।
जिस कमाल खान और शाहरुख़ खान ने कहा था कि मोदी सरकार बनने के बाद देश छोड़ देंगे उन्हें लग रहा है की देश मे असहिष्णुता बढ़ रही है। जिन 170 लोगों ने यूएस गवर्नमेन्ट को पत्र लिखा था कि मोदी को वीजा न दिया जाय।उन्हें लगता है कि देश में असहिष्णुता बढ़
रही है। जिन बुद्धिजीवियों ने आतंकियों अफज़ल,अज़मल और याखूब मेनन की फांसी रोकने के लिए प्रेसीडेंट को चिट्ठी तक लिखा था, उन्हें लग रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।
जो बुद्धिजीवी वर्ग पोर्न और समलैंगिकता का समर्थन करते हैं, उन्हें लग रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।मोदी सरकार की ब्लैक मनी पालिसी की वजह से जिन एनजीओ संचालकों की फंडिंग बंद हो गयी, उन्हें लगता है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।
सारांश पूरी देश में असहिष्णुता बढ़ी है, उस विचारधारा के ख़िलाफ़ जिसने
दशकों तक राष्ट्रवादी विचारधारा को दबाने के लिए उसे साम्प्रदायिकता का नाम दे दिया। आज लोगों के मन में प्रखर राष्ट्रवाद की भावना का जन्म हो रहा है, तो इन्हें अपने अस्तित्व पर खतरा मंडराता दिख रहा है।इसलिए दरबारी भाँटों,बामपंथी इतिहासकारों और दाऊद की फंडिंग पर फ़िल्में बनाने वाले फिल्मकारों को लग रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।
ये विकाश के मुद्दे पर मोदी सरकार की आलोचना कर नहीं सकते । इसलिए "असहिष्णुता" का काल्पनिक मुद्दा बना लिया...

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