Thursday 28 January 2016

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“°°°°असहिष्णुता “
     (लेख बी. जयमोहन  जी
              की कलम से)

‘सत्ता’  का असली अर्थ मुझे तब समझ में आया जब  दिल्ली में मुझे 1994 में  “संस्कृति सम्मान” पुरस्कार मिला .वहां स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) में  मैं दो दिनों तक रुका था.वैसे भी सूचना और संस्कृति मंत्रालयों से मेरा जुडाव तो था ही ,परन्तु इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) वो जगह है जहाँ सत्ता सोने की  चमकती थालियों में  परोसी जाती है.

इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) एक शांत, और भव्य बंगले में  स्थित है जिसमे हरे भरे  लॉन , उच्च स्तरीय खाने और  पीने की चीजों के साथ शांति से घूमते हुए वेटर हैं , ऊपर वाले होंठो को बगैर पूरा खोले ही मक्खन की तरह अंग्रेजी बोलने वाले लोग हैं , लिपिस्टिक वाले होठों के साथ सौम्यता से  बालों को सुलझाती हुई महिलायें हैं, जो  बिना शोर किये हाथ हिलाकर या गले मिलकर शानदार स्वागत करते हैं.

मैं अब तक कई  अच्छे होटलों में रुक चूका  हूँ  लिकिन IIC  जैसी सुविधा  मुझे अब तक किसी जगह देखने को नहीं मिली.

भारत सरकार द्वारा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) की स्थापना एक स्वायत्त  संस्था के रूप में स्वछन्द विचारधारा और संस्कृति के के उत्थान के लिए की गयी. और जहाँ तक मेरी याददाश्त ठीक है तो मुझे याद हैं की मैं उस शाम डॉ करन सिंह जो इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) के प्रमुख रह चुके हैं ,उनसे मिला था.

मैंने  उन सब बुद्धिजीवियों को वहा देखा जिनके बारे में मैं अंग्रेजी साहित्य और पत्रिकाओं के माध्यम से जानता था. यू.आर.अनंतमूर्ति वहां पिछले चार सालो से  एक स्थायी स्तम्भ की तरह जमे हुए थे . गिरीश कर्नाड  वहां कुछ दिनों से रह रहे थे. प्रीतिश नंदी, मकरंद परांजपे  , शोभा डे जैसे जाने कितने  लेखक ,पत्रकार और विचारक IIC के कोने कोने में दिख  रहे थे .

  ये सच है की उस दिन मैं बिलकुल ही अभिभूत था . गिरीश कर्नाड को देखते ही मेरी अर्धांगिनी अरुनमोझी  दौड़ के उनके पास गयीं थीं और उनको अपना परिचय  दिया था .मुझे पता चला की नयनतारा सहगल यहाँ प्रतिदिन “ड्रिंक करने” के लिए आया करतीं थीं. मैंने उस दिन भी उन्हें देखा था .साथ ही मुझे ये भी महसूस हुआ कि  राजदीप सरदेसाई और अनामिका हकसार भी , जिन्हें मेरे साथ ही पुरस्कार दिया गया था , वहां रोजाना आने वालों में से ही थे.

बंगाली कुरता और कोल्हापुरी चप्पलें पहने हुए इन लोगों की  आँखों पर छोटे छोटे शीशे वाले चश्मे थे .सफ़ेद बालों और खादी साड़ियों में लिपटी महिलाओ में से एक की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने बताया था की ये कपिला वात्स्यायन हैं .उन्होंने ये भी बताया था की पुपुल जयकार भी आयेंगी . जिधर भी मुड़ो वहां बस साहित्यिक बाते और कला से सम्बंधित वार्तालाप ही नजर आ रहे थे .

इस जलसे से मुझे थोड़ी सिहरन सी होने लगी थी ,वहां की अत्याधुनिक बुद्धिजीविता  के दर्शन ने मुझे अलग थलग सा कर दिया .वेंकट स्वामीनाथन जिनसे उसके अगले दिन मुलाकात हुई थी उन्होंने मेरी बेचैनी के भाव को भांप लिया. उन्होंने कहा –“ इस भीड़ का तीन चौथाई भाग महज कौवों का झुण्ड है. विभिन्न “पॉवर सेंटर्स  “ के पैरों तले रहकर  ये अपना जीवन निर्वाह करते हैं. इसमें से ज्यादातर लोग  सिर्फ सत्ता के दलाल हैं . बड़ी कोशिश इतने सारे लोंगों में से  सम्मान और आदर के लायक सिर्फ एक या दो लोग ही मिलेंगे और ये लोग इस वातावरण को सहन  न कर पा सकने की स्थिति में स्वयं  कुछ  देर बाद यहाँ से निकल लेंगे."

लेकिन ये वो लोग हैं हैं  जो हमारे देश की  संस्कृति का निर्धारण करते हैं .एक निश्चित शब्दजाल का प्रयोग करते हुए ये किसी भी विषय पर रंगीन अंग्रेजी में घंटे भर  तो बोलते हैं परन्तु इकसाठवें मिनट में ही इनका रंग फीका पड़ना शुरू हो जाता है .

वास्तव में ये किसी चीज के बारे में कुछ नहीं जानते”.  वेंकट स्वामीनाथन ने कहा. “ सेवा संस्थानों और सांस्कृतिक संस्थानों के नाम इनके पास चार पांच ट्रस्ट होते हैं और ये उसी के सम्मेलनों में भाग लेने के लिए इधर उधर ही हवाई यात्रायें करते रहते हैं. एक बार कोई भी सरकारी सुविधा या आवास मिलने के बाद इन्हें वहां से कभी नहीं हटाया जा सकता .अकेले दिल्ली में करीब पांच हज़ार बंगलो पर इनके अवैध कब्जे हैं.और  दिल्ली में ही इनकी तरह एक और पॉवर सेण्टर  JNU भी है. वहां की भी कहानी यही है .”

तो सरकार  खुद इन्हें हटाती क्यों नहीं ? मैंने कहा .उन्होंने कहा “पहली बात तो सरकार इस बारे में सोचती ही नहीं .क्यों की नेहरू के ज़माने से ही ये लोग इसे चिपके हुए हैं .ये लोग एक दुसरे का सपोर्ट करते हैं.अगर कभी किसी आईएएस अधिकारी ने इन्हें हटाने की कोशिश भी की तो ये सत्ताधारी लोगों के पैर पकड लेते हैं और  बच  जाते हैं”.

“इसके अलावा एक और बात है” . वेंकट स्वामीनाथन ने कहा. “ये महज एक परजीवी ही नहीं हैं अपितु स्वयं को प्रगतिशील वामंथी कहकर अपनी शक्ति का निर्धारण करते हैं “  आपने देखा की नहीं. “हाँ”- मैंने  आश्चर्य चकित होते हुए कहा.

“दुनिया भर में विभिन्न प्रकार के सेमीनार में उपस्थित होने के कारण ये दुनिया भर में जाने जाते हैं .ये बहुत ही अच्छे तरीके से एक दुसरे के साथ बंधे हुए हैं .दुनिया भर के पत्रकार भारत में कुछ भी होने पर इनकी राय मांगते हैं .इन्ही लोगों ने ही कांग्रेस को एक वामपथी आवरण दे रखा है, उस हिसाब से अगर आप देखते है तो इन पर खर्च की गयी ये धनराशि तो बहुत ही कम है.”उन्होंने कहा. “ये सरकार के सिर  पर बैठे हुए जोकर की तरह हैं और कोई भी इनका कुछ नहीं कर सकता. और ये भारत की कला , संस्कृति और सोच का निर्धारण करते हैं.”

मैं अपने मलयालम पत्रकार मित्रों  के साथ अकसर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) में रहा हूँ .उनके लिए लिए IIC  अफवाहों  को उठाकर  “न्यूज” में बदल देने वाली जगह है. इसमें कोई रहस्य नहीं कि शाम ढलते ही इनके अन्दर अल्कोहल इनके सर चढ़कर बोलता है.

लेकिन मुझे उन लोगों पर दया आती है जो इन “बुद्धिजीवियों” द्वारा किसी अंग्रेजी अखबार के बीच वाले पेज पर परोसे गए “ ज्ञान के रत्नों” पर हुई राजनैतिक बहस में भागीदारी करते हैं.इन बुद्धिजीवियों को  वास्तव  में वास्तविक राजनीति का जरा भी ज्ञान नहीं होता . ये बस अपने उथले ज्ञान के  आधार पर जरुरत से ज्यादा चिल्लाते हैं और  अपने नेटवर्क द्वारा प्रदत्त स्थान में मुद्दे उठाते हैं. बस .

       इनके बारे में लिखते हुए जब मैंने ये कहा की बरखा  दत्त और कोई नहीं  बल्कि एक दलाल है सत्ता की , तो मेरे अपने ही मित्र मुझसे एक “प्रगतिशील योद्धा” की  छवि आहत करने को लेकर झगड़ बैठे.पर मेरा सौभाग्य था की कुछ दिन के अन्दर ही बरखा दत्त की  टाटा  के साथ की गयी दलाली  नीरा रडिया  टेप के लीक होने पर प्रकाश में आई(इस केस का क्या हुआ .क्या किसी को पता है ?). ऐसे भीषण खुलासे भी  बरखा दत्त  को उसके पद से एक महीने के लिए भी नहीं हटा सके .ये स्तर  है इनके शक्ति का .

लेकिन अब , स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी ने इस चक्रव्यूह को तोड़ने की हिमाकत की है .चेतावनियाँ पिछले छह महीने से ही इन्हें दी  जाती रही है.पिछले हफ्ते सांस्क्रतिक मंत्रालय ने इन्हें नोटिस भेजने का निश्चय किया.इन बुद्धिजीवियों द्वारा “असहिष्णुता” की आग फैलाने का कारण यही है शायद.

उदाहरण  के लिए पेंटर  जतिन दास, जो की बॉलीवुड एक्टर नंदिता दास के पिता हैं ,इन्होने पिछले कई सालों से दिल्ली के जाने माने एरिये में एक सरकारी बंगले पर कब्ज़ा कर रखा है.सरकार ने उन्हें बंगले को खाली करने का नोटिस दे दिया .यही कारण हैं की नादिता दास लगातार अंग्रजी चैनलों पर असहिष्णुता के ऊपर बयानबाजी कर रही है और  अंग्रेजी  अखबारों (जो की इन लोगों के नेटवर्क द्वारा ही पोषित है ) में कॉलम  लिख रही  हैं .

मोदी जैसे एक मजबूत आदमी , ने भी मुझे लगता  है की गलत रँग  पर हाथ रख दिया है.ये तथाकथित बुद्धिजीवी बेहद शक्तिशाली तत्व हैं.मीडिया के द्वारा ये भारत को नष्ट कर सकते हैं .ये पूरी दुनिया की नजर में ये ऐसा  दिखा सकते हैं कि जैसे भारत में खून की नदियाँ बह रही हों  .ये विश्व के बिजनेसमैन लॉबी  को  भारत में निवेश करने से रोक सकते हैं.टूरिस्म इंडस्ट्री को बर्बाद कर सकते हैं .सच्चाई ये है की इनके जैसी  भारत में कोई दूसरी शक्ति ही नहीं हैं .भारत के लिए इनको सहन करना अनिवार्य है. और इनके प्रति मोदी जी की असहिशुणता बेहद खतरनाक है ..सिर्फ उनके लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी.

(नागर कोल के रहने  वाले बी. जयमोहन  जी एक जाने माने साहित्य आलोचक, समकालीन तमिल और मलयालम साहित्य के बेहद प्रभावशाली लेखकों में से एक हैं. “असहिष्णुता” पर लिखे उनके एक लेख का ये हिन्दी अनुवाद  है।)

Sunday 24 January 2016

हमें न्याय नहीं मिला

" इस दुनिया में सबसे बड़ी अदालत इतिहास की है, कोर्ट में क्या हुआ, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ, युद्ध में क्या हुआ, इलेक्शन में क्या हुआ इन सबका कोई मूल्य नहीं है, मूल्य है तो सिर्फ इस बात का कि इतिहास में क्या लिखा जाएगा???

और, यदि आप इतिहास उठा कर देखें तो आपको पता चलेगा कि इतिहास ने कभी उसका साथ नहीं दिया जो न्याय संगत था, इतिहास ने कभी उसका साथ नहीं दिया जो शांतिप्रिय था, अपितु इतिहास की अदालत में सदैव वही विजयी हुआ है जो शक्तिशाली था।

यदि इतिहास न्यायसंगत लोगों का साथ देता तो आज दिल्ली में बाबर रोड है, परन्तु राणा सांगा रोड क्यों नहीं है ??, क्योंकि बाबर आया और उसने राणा सांगा को हरा दिया, भले ही राणा सांगा सही थे, न्यायसंगत थे परन्तु आज इतिहास ने उन्हें भुला दिया है।

हमारे हजारों वर्ष के इतिहास में हम भारतीयों ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, किसी अन्य धर्म को आहत नहीं किया, कभी भी हमने अन्य धर्म के धार्मिक स्थलों को नहीं तोड़ा, परन्तु इतिहास में जिस भारतवर्ष की सीमाएं अफगानिस्तान / ईरान तक थी आज सिकुड़कर केवल वर्तमान इण्डिया तक रह गयी हैं ,क्यों आखिर ऐसा क्यों हुआ ?? क्या जरूरत से ज्यादा अहिंसा , सहनशीलता और मानवता दिखाने का क्या यह परिणाम नहीं था ?? हमें जंगली माना गया।हमें प्राकृतिक गुलाम कहा गया हमारे सनातन इतिहास को ठुकराया गया।मुगल और अंग्रेजों को हमारे लिये बरदान माना गया।विदेशी भाषा के बल पर हमें हमेशा के लिये गुलाम बना दिया गया।हमारी मानसिकता में हताशा,निराशा और गुलामी की सोच भर दी गयी।हमारी वैश्विक उदारता को कमजोरी बताया गया।हमारे धर्म को पाखंड घोषित किया गया।इन सब के लिये हम खुद भी जिम्मेदार है।जब हम नि:शक्त घोषित हो गये तो इतिहास ने हमें कूडा बना दिया।

हम न्यायसंगत थे, हम शांतिप्रिय थे, हम मानवता में विश्वास करते थे, परन्तु इतिहास ने हमें सजा दी, सजा इस बात की कि हमने अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं किया। यदि विदेशी आक्रांताओं की शक्ति और उस समय भारतवर्ष की शक्ति का अनुपात निकाला जाए तो 1: 1000 का अनुपात भी नहीं था, फिर भी हम पर विदेशियों ने शासन किया क्योंकि भारत की शक्ति बंटी हुई थी एकजुट नहीं थी ,और न सिर्फ उन मुगलों और अंग्रेज लुटेरों ने शासन किया वरन् जब उनका मन भर गया और वे जाने लगे तो यहां की सत्ता अपने गुलामों को सौंप गए, और तब भारत में गुलाम वंश का उदय हुआ।

इतिहास ने हमें सिर्फ इस बात की सजा दी कि हमने राष्ट्रहित से आगे अपने आदर्शों को रखा, यदि कभी भी आपके आदर्शों और राष्ट्रहित के बीच में टकराव की स्तिथि पैदा हो तो हमेशा आदर्शों से पहले राष्ट्रहित को ही चुनें अर्थात राष्ट्रहित में यदि कोई अनैतिक कार्य भी करना पड़े तो करें, महाभारत में भगवान श्री कृष्ण भी भ्रमित अर्जुन को बार-२ यही समझा रहे होते हैं की दुष्ट को पापी को अधर्मी को अगर अधर्मपूर्वक भी मारना पड़े तो वह भी धर्म ही होगा ना की अधर्म ''

Monday 18 January 2016

इसे पढ़ें।

हिंदी,हिंदू औरहिंदुस्तान बताएगा काशी जर्नलऑफ सोशल साइंस
ऐसा क्या है इस जर्नल में,कौन है इसका प्रणेता। क्या है इसकी विषय वस्तु जानने को पढ़ें पत्रिका..
http://up.patrika.com/varanasi-news/hindi-hindu-and-hindustan-tell-kashi-journal-of-social-science-9338.html

Wednesday 13 January 2016

इस्लाम के प्रति कट्टरता।

इस्लाम के अनुयायियों की एक खासियत तो माननी ही होगी। इनका धैर्य असीम है। ऐसा धैर्य अटूट विश्वास से पैदा होता है। अन्य धर्मावलम्बी जहाँ अपने विश्वासों में वैज्ञानिकता ढूँढ़ते रहते हैं, वहीँ वैज्ञानिकता-अवैज्ञानिकता की परवाह किये बिना इस्लाम के अनुयायी अपने विश्वासों पर अटल हैं। कोई कुछ भी कहता रहे, पर इन्हें विश्वास है कि जीत इन्हीं की होगी क्योंकि अल्लाह ने खुद फ़रमाया है: अल्लाह पर ईमान न लाने वाले शैतान की पार्टी के हैं (क़ुरआन 58:19) और वह हारने के लिए अभिशप्त हैं, वहीँ अल्लाह और मुहम्मद पर ईमान लाने वाले अल्लाह की पार्टी के हैं और जीत उन्हीं की होगी (क़ुरआन 58:22)। अल्लाह के इस सुस्पष्ट सन्देश पर पूर्ण विश्वास रखने के कारण मुसलमान कभी हार नहीं मानते, और पूरी दुनिया में इस्लाम का झंडा फहराने के अल्लाह के फरमान (क़ुरआन 9:29) के अनुपालन में प्राणपण से लगे रहते हैं।
इस विश्वास का ही परिणाम है कि यह पूरी दुनिया पर दावा ठोंकते हैं, और अपना दावा कभी नहीं छोड़ते। युद्ध में कब्जे पर कब्ज़े होते रहते हैं, और इस्लाम ने एक बार जहाँ कब्ज़ा कर लिया, उस पर इनका दावा अनन्त काल तक बना रहता है; इस बात का कोई मतलब नहीं रह जाता कि उनके कब्ज़े से पहले वहाँ कौन रहता था या बाद में वहाँ किसी और का कब्ज़ा हो गया। अपनी इस विशेषता के कारण यह आज भी न तो भारत-भूमि पर अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार हैं, और न ही कुस्तुंतुनिया (Constantinople) सहित शेष योरप पर। यहाँ यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि कुस्तुंतुनिया पर कब्ज़े की पहली कोशिश ईसवी सन 674 में हुई थी, और अनेक लड़ाइयों के बाद कब्ज़ा सन 1453 में। जो क़ौम अपने विश्वास के बल पर इतनी लम्बी लड़ाई लड़ने का धैर्य रखती हो, उससे कोई कैसे लड़ेगा? ऐसी क़ौम को B52 बमवर्षकों और अन्य उच्च तकनीक वाले हथियारों से नहीं हराया जा सकता; तकनीक उन्हें केवल एक अस्थायी विजय का आभास दिला सकती है। इस्लाम अथवा इस्लामी आतंकवाद पर निर्णायक विजय तभी प्राप्त होगी, जब इस्लाम का अंतिम अनुयायी समाप्त हो जायेगा। इस्लाम अपने विश्वास के सहारे अन्त तक लड़ने के लिए तैयार है, जबकि तकनीक से लड़ने वाले अस्थायी विजय के बाद मैदान छोड़ देते हैं। इस्लाम और इस्लामी आतंकवाद से लड़ने के लिए उनके टक्कर का ही विश्वास चाहिए। क्या किसी में है ऐसा अटूट विश्वास?

इस्लाम के प्रति कट्टरता

Tuesday 12 January 2016

ओ3म् का महत्व

---~~~॥ ओ३म् ॥~~~---
★सम्पूर्ण सफलता का रहस्य ॥ १०८ ॥
                    ॥ओ३म्॥ का जप करते समय १०८ प्रकार की विशेष भेदक ध्वनी तरंगे उत्पन्न होती है जो किसी भी प्रकार के शारीरिक व मानसिक घातक रोगों के कारण का समूल विनाश व शारीरिक व मानसिक विकास का मूल कारण है। बौद्धिक विकास व स्मरण शक्ति के विकास में अत्यन्त प्रबल कारण है।
  मेरा आप सभी से अनुरोध है बिना अंधविश्वास समझे कर्तव्य भाव से इस ॥ १०८ ॥ को पवित्र अंक स्वीकार कर, आर्य-वैदिक संस्कृति के आपसी सहयोग, सहायता व पहचान हेतु निःसंकोच प्रयोग करें । इसका प्रयोग प्रथम दृष्टिपात स्थान पर करें जैसे द्वार पर इस प्रकार करें।
                         ॥ १०८ ॥
यह अद्भुत व चमत्कारी अंक बहुत समय काल से हमारे ऋषि -मुनियों के नाम के साथ प्रयोग होता रहा है और अब अति शीघ्र यही अंक हमारी महानम सनातन वैदिक संस्कृति के लिये प्रगाढ़ एकता का विशेष संकेत-अंक (code word) बन जायेगा।
----~~~॥ओ३म् ॥~~~---
★ संख्या १०८ का रहस्य ★
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अ→१ ...   आ→२ ...  इ→३ ...     ई→४ ... उ→५ ...    ऊ→६. ...  ए→७ ...     ऐ→८  ओ→९ ... औ→१० ... ऋ→११ ... लृ→१२
अं→१३ ... अ:→१४..  ऋॄ →१५.. लॄ →१६
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क→१ ...   ख→२ ...   ग→३ ...    घ→४ ...
ङ→५ ...   च→६ ...    छ→७ ...   ज→८ ...
झ→९ ...   ञ→१० ...  ट→११ ...  ठ→१२ ...
ड→१३ ...  ढ→१४ ... ण→१५ ...  त→१६ ...
थ→१७ ...  द→१८ ... ध→१९ ...  न→२० ...
प→२१ ...  फ→२२ ... ब→२३ ... भ→२४ ...
म→२५ ...  य→२६ ...  र→२७ ...  ल→२८ ...
व→२९ ...  श→३० ... ष→३१ ...  स→३२ ...
ह→३३ ...  क्ष→३४ ... त्र→३५ ...  ज्ञ→३६ ...
ड़ ... ढ़ ...
--~~~ओं खम् ब्रह्म ~~~--
ब्रह्म = ब+र+ह+म =२३+२७+३३+२५=१०८
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(१) — यह मात्रिकाएँ (१८स्वर +३६व्यंजन=५४) नाभि से आरम्भ होकर ओष्टों तक आती है, इनका एक बार चढ़ाव, दूसरी बार उतार होता है, दोनों बार में वे १०८ की संख्या बन जाती हैं। इस प्रकार १०८ मंत्र जप से नाभि चक्र से लेकर जिव्हाग्र तक की १०८ सूक्ष्म तन्मात्राओं का प्रस्फुरण हो जाता है। अधिक जितना हो सके उतना उत्तम है पर नित्य कम से कम १०८ मंत्रों का जप तो करना ही चाहिए ।।
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(२) —  मनुष्य शरीर की ऊँचाई
        = यज्ञोपवीत(जनेउ) की परिधि
        = (४ अँगुलियों) का २७ गुणा होती है।
        = ४ × २७ = १०८
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(३)     नक्षत्रों की कुल संख्या = २७
          प्रत्येक नक्षत्र के चरण =   ४
         जप की विशिष्ट संख्या = १०८
अर्थात गायत्री आदि मंत्र जप कम से कम १०८ बार करना चाहिये ।
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(४) — एक अद्भुत अनुपातिक रहस्य
★ पृथ्वी से सूर्य की दूरी/ सूर्य का व्यास=१०८
★ पृथ्वी से चन्द्र की दूरी/ चन्द्र का व्यास=१०८
अर्थात मन्त्र जप १०८ से कम नहीं करना चाहिये।
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(५) हिंसात्मक पापों की संख्या ३६ मानी गई है जो मन, वचन व कर्म ३ प्रकार से होते है। अत: पाप कर्म संस्कार निवृत्ति हेतु किये गये मंत्र जप को कम से कम १०८ अवश्य ही करना चाहिये।
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(६) सामान्यत: २४ घंटे में एक व्यक्ति २१६०० बार सांस लेता है। दिन-रात के २४ घंटों में से १२ घंटे सोने व गृहस्थ कर्त्तव्य में व्यतीत हो जाते हैं और शेष १२ घंटों में व्यक्ति जो सांस लेता है वह है १०८०० बार। इसी समय में ईश्वर का ध्यान करना चाहिए । शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर ईश्वर का ध्यान करना चाहिये । इसीलिए १०८०० की इसी संख्या के आधार पर जप के लिये १०८ की संख्या निर्धारित करते हैं।
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(७) एक वर्ष में सूर्य २१६०० कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छःमाह उत्तरायण में रहता है और छः माह
दक्षिणायन में। अत: सूर्य छः माह की एक स्थिति
में १०८००० बार कलाएं बदलता है।
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(८) 786 का पक्का जबाब — ॥ १०८ ॥
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(९) ब्रह्मांड को १२ भागों में विभाजित किया गया है। इन १२ भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन १२ राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या ९ में राशियों की संख्या १२ से गुणा करें तो संख्या १०८ प्राप्त हो जाती है।
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(१०) १०८ में तीन अंक हैं १+०+८. इनमें एक “१" ईश्वर का प्रतीक है। शून्य “०" प्रकृति को दर्शाता है। आठ “८" जीवात्मा को दर्शाता है क्योकि योग के अष्टांग नियमों से ही जीव प्रभु से मिल सकता है । जो व्यक्ति अष्टांग योग द्वारा प्रकृति के विरक्त हो कर ( मोह माया लोभ आदि से विरक्त होकर ) ईश्वर का साक्षात्कार कर लेता है उसे सिद्ध पुरुष कहते हैं। जीव “८" को परमपिता परमात्मा से मिलने के लिए प्रकृति “०" का सहारा लेना पड़ता है। ईश्वर और जीव के बीच में प्रकृति है। आत्मा जब प्रकृति को शून्य समझता है तभी ईश्वर “१" का साक्षात्कार कर सकता है। प्रकृति “०" में क्षणिक सुख है और परमात्मा में अनंत और असीम। जब तक जीव प्रकृति “०" को जो कि जड़ है उसका त्याग नहीं करेगा , शून्य नही करेगा, मोह माया को नहीं त्यागेगा तब तक जीव “८"  ईश्वर “१" से नहीं मिल पायेगा पूर्णता (१+८=९) को नहीं प्राप्त कर पायेगा ।
९ पूर्णता का सूचक है।
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(११) जैन मतानुसार
     अरिहंत के गुण - १२
        सिद्ध के गुण - ८
     आचार्य के गुण - ३६
    उपाध्याय के गुण - २५
          साधु के गुण - २७
              कुल योग - १०८
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(१२) वैदिक विचार धारा में मनुस्मृति के अनुसार
  अहंकार के गुण = २
      बुद्धि के गुण = ३
        मन के गुण = ४
  आकाश के गुण = ५
       वायु के गुण = ६
     अग्नि के गुण = ७
       जल के गुण = ८
     पॄथ्वी के गुण = ९
२+३+४+५+६+७+८+९ =
अत: प्रकॄति के कुल गुण = ४४
                 जीव के गुण = १०
इस प्रकार संख्या का योग = ५४
अत: सृष्टि उत्पत्ति की संख्या = ५४
    एवं सृष्टि प्रलय की संख्या = ५४
       दोंनों संख्याओं का योग = १०८
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(१३)  ★ Vertual Holy Trinity ★
संख्या “१" एक ईश्वर का संकेत है।
संख्या “०" जड़ प्रकृति का संकेत है।
संख्या “८" बहुआयामी जीवात्मा का संकेत है।
[ यह तीन अनादि परम वैदिक सत्य हैं ]
[ यही पवित्र त्रेतवाद ( Holy Trinity ) है ]
संख्या “२" से “९"  तक एक बात सत्य है कि इन्हीं आठ अंकों में “०" रूपी स्थान पर जीवन है। इसलिये यदि “०" न हो तो कोई क्रम गणना आदि नहीं हो सकती। “१" की चेतना से “८" का खेल । “८" यानी “२" से “९" । यह “८" क्या है ? मन के “८" वर्ग या भाव । ये आठ भाव ये हैं - १. काम ( विभिन्न इच्छायें / वासनायें ) । २. क्रोध । ३. लोभ । ४. मोह । ५. मद ( घमण्ड  ) । ६. मत्सर ( जलन ) । ७. ज्ञान । ८. वैराग ।
एक सामान्य आत्मा से महानात्मा तक की यात्रा का प्रतीक है ——★ ॥ १०८ ॥ ★——
इन आठ भावों में जीवन का ये खेल चल रहा है ।
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(१४) सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से नौ रश्मियां निकलती हैं और ये चारो ओर से अलग-अलग निकलती है। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गई। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बनें । इस तरह सूर्य की जब नौ रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनका पृथ्वी के आठ बसुओं से टक्कर होती हैं। सूर्य की नौ रश्मियां और पृथ्वी के आठ बसुओं की आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुई वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित है।
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  रहस्यमय संख्या १०८ का हिन्दू- वैदिक संस्कृति के साथ हजारों सम्बन्ध हैं जिनमें से कुछ को मैंने जाना है और कुछ को शायद आप जानते होंगें तो कृपया उसे हमारे साथ विनिमय करें।